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[शास्त्रवार्ता स्त० श्लो.
जैन दर्शन का अनमोल जवाहर ! गहन एवं तात्त्विक दार्शनिक चर्धाओं का भण्डार !!
सम्मतितर्कप्रकरण (खण्ड १) मूलका-श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरि महाराज, व्यालयाकार-तर्कपञ्चानन श्री अभयदेव सूरि महाराज मार्गवर्शक-न्यायविशारद आचार्य श्री विजयभुवनभानुसुरोश्वरजी;
विवरणकार-विद्ववर्य मुनिश्री जयसुन्दर विजयजी; पहली बार यह ग्रन्थ ( प्रथम खण्ड ) हिन्दी विवेचन के साथ मुद्रित हुआ है। जैन एवं जैनेतर छहों दर्शनों के सिद्धान्तों की इस ग्रन्थ में गहराई से चर्चा एवं समीक्षा की गई है। मूल ग्रन्थकार, व्याख्याकार दोनों महर्षि जैन शासन के अप्रतिम विद्वान् एवं कुशल ताकिक थे। अन्य-अन्य एकान्तवादी दर्शनों का निरसन करके इस ग्रन्थ में सुप्रसिद्ध स्थाद्वाद-अनेकान्त वाद के सिद्धान्त की प्रतिष्ठा की गई है। प्रत्येक जैन के लिए गौरव लेने योग्य और हर दार्शनिक विद्वान के लिए अभ्यास करने जैसा मननीय ग्रन्थ है। चिरकाल से दुर्लभ यह ग्रन्थ हिन्दी विवेचन सहित मुद्रित होने से अध्येता वर्ग के लिए अत्यन्त उपकारक बनेगा । आज ही आप की प्रति मंगवा लीजिए।
क्राउन ८ पेजी-६६० पृष्ठः सुन्दर मुद्रण; प्रथम स्वण्डा कीमत ८०-०० रुपये ___ न्याविशारद आचार्य श्रीविजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से प्रकाशित संस्कृत प्राकृत व हिन्दी ग्रंथ उपलब्ध हैं। ललितविस्तरा ( हिन्वी विवेचन )
१२-०० ध्यान शतक ( ॥ ॥ ) जैनधर्म का परिचय महासती मवनरेखा
५-०० गणधरवाद
३-०० आहार-शुद्धि प्रकाश नय-रहस्य ( हिन्दी-विवेचन)
२५-०० शास्त्रवार्ता समुच्चय १ से ८ स्तबक (छह जिल्दों में )
१४१-०० हारिभ योग मारती (हरिभद्रसूरि विरचित योगविशिका, योगशतक, ___ योगदृष्टिसमुच्चय और योगविदु. (चार सटीक ग्रन्थ-समुद्र)
२०-०० उत्तराध्ययन सूत्र ( भावविजय टीका)
७५-०० उत्तराध्ययन सूत्र ( नेमिचन्द्रसूरि टीका ) धर्मरत्नप्रकरण ( सटीक )
१२-०० गुणस्थानकमारोह-षशिवषत्रिशिका ( सटीक)
१२-०० विशेषावश्यक भाष्य माग १, २
१५०-०० प्राधिस्थान-दिव्यदर्शन साप्ताहिक; ६८ गुलाब पाडी बंबई-४००००४