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स्पा० १० टीका एवं हिन्दीविवेचन ]
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६/७
स्तबक १-शुद्धिपत्रकम् पृष्ठापंक्ति असुद्ध
शुद्ध पृष्ठ/पंक्ति अशुद्ध १/३ करूपता
कल्पलता २४/२५ है तो यह है"-तो यह नोट:-कारिका में. २५/२५ उत्पपति
उपपत्ति समीक्षा की है । ये चार पंक्ति १८वों २६/३३ . व्याख्याकारने पूर्वपक्षीने पंक्ति के बाद समझना। ३५/२०
के रूप में -हेतुफल ३८/२३ प्रभाव
प्रापमाव ९/१६ भी जीव जीव भी तथा अर्थात्
तथा ११/१२ सर्वज्ञान सर्वशज्ञान ५२/२४ क्रम-सम्बन्ध
सम्बन्ध १२/१० समस्त
सम्मत | २९ हिंसा-हिंसा
हिंसा /२० बुद्ध बुद्धि ५६/२१
विशुद्धि "अतः
अतः
अवस्था अवस्था का आपादान १५/२४ सद से भिन्न = सत् से भिन्न' |७३/१६ अनुपबन्ध
अपुनर्बन्ध १६/२२ पर ज्ञान
८७/८ गुगेकटयां
गुणैकमयां १९/११ .विषयग्राही विषयग्रहण [ 80/ त्रयाणणा
त्रयाणा १६. "योगपद से....... "योगपब से बोध्य ६४/१७ विशुद्धि से केवल विशुद्धि से
आवश्यक हो है" योगतिरोधस्वरूप | १०७/१ कृत्वा" कृत्वा" (९-२१) इस पंक्ति के बदले क्रिया अवश्यमेव । ११ इन्द्रिय) ग्रादि का इन्द्रिय आवि का) केवलज्ञानपूर्वक ही होती है । अतः १०९/२१ आत्माक
मास्मा में : ज्ञान-क्रिया दोनों के योग से हो मुक्ति १०९/२७ स्यमास्य
स्वभावस्व साध्य है" ऐसा पड़े। ११०/१७ अपवर्ग
अपगम २०/५ यये विद्यायां ये विद्यायां । १११/३ रूपं
रूपम २१/२६ अदृष्टात्मक जव्यात्मक |१२०/२७ त्या=कर
त्याग कर
म: