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[ शाखवार्ता० प्रन्थानुक्रमणिका
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विषय सुश्रूषा आदि क्रम से तत्वश्रवान का उदय संसार एक भीषण समुद्र सम्पष्टिको भवस्यरूप का यथार्थ दर्शन संवेगर्भित आत्मविचारणा नारक आदि चार गति में दुःख ही दुःख ८२ चारगति के दुग्न का वर्णन-उपदेशमाला ८४ सुन का आविर्भाव एकमात्र मोक्ष में ८५ भवनैर्गुण्यदर्शी को मोक्षार्थ निरन्तर उत्साह मुक्ति की साधना वास्तव में दुष्कर नहीं ९५ शुचारित्र-ध्यानारोहणादिक्रम से केवलज्ञान धर्मध्यान से शुक्लध्यान की ओर ९८ प्रथम शुक्लध्यान द्वितीय शुक्टभ्यान पर १०० सर्वकर्मक्षय की अन्तिमप्रक्रिया १॥ समुदधात की सविस्तर प्रक्रिया । २०२ समुद्धात में योगव्यापार अयोगिकवलि दशामें ध्यानसाधक हेतु पंचक का तात्पर्य शुक्लध्यान की चतुर्थ अवस्था । और सिद्धि शुद्ध तप स्वरूप ज्ञानयोग से मुक्ति १०८ मुक्ति में स्थिरतारूप चारित्र की अनिवृत्ति मोक्ष में चारित्र का असंभवएकनयमत क्षायोपशमिक चारित्र का क्षायिकभाव में रूपाम्लर शरीरपात के साथ शानविनाश आपत्ति का परिहार
विषय श्रीर्य रहित सिद्धों को चारित्र कैसे ? ११५ शाश्वत चारित्र में सादिसान्तम्ब की अनुपपत्ति
११६ अधिकारि चारित्रगुण के ऊपर तीन विकल्प अविकारित्वरूप चारिन के उगपादन का नव्यप्रयास चारित्र उपपादक नव्यमत का निरसन १६८ अक्रिया से मोक्ष मुचक पचन की संगति ११९ निश्चयनय से चारित्र में मोशहेतुत्व का समर्थन नारी का प्रभाव मानने पर कोई आपत्ति नहीं सिद्धात्मा में चारित्र कल्पना आगमयाय १२३ चारित्रात्मा की सर्वाल्परण्या से चारित्राभाव की मुक्ति में सिद्धि १२४ परेशीमत समक्ष दुसरे पक्ष का निवेदन
१२४ सायिकभाव की अविनश्वरता १२५ फलामात्र से चारित्रामाव की सिद्धि अशक्य चारित्र और ज्ञान में बैटलण्य
का उपपादन सल्पिसंख्याबोधक वचन क्रियात्मक चारित्र के लिये शानयोग से मुक्ति यह बात वेदान्तमत की अपेक्षा से इच्छायोग-शास्त्रयांग-सामर्थ्य योग १३१ सामर्थ्ययोग के विना केवल ভাষা ও धर्मसन्यास और योगसन्यास योगदृष्टिक्षमुच्चय ग्रन्थ में इच्छादि तीन योम स्तबक-१-शुद्धिपत्रक
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