________________
[ १३
विषय
दिगम्बरमत का खण्डन बनादिपरिग्रह में पकान्तिक छेद की आशंका एकातिक छेद की आशंका का समाधान वस्त्रादि के परिग्रह में ग्रन्थ प्यवहार असिद्ध घखादि में प्रन्थस्वसाधक अनुमान का भंग स्वत्वपर्याय से यत्रादि में परिप्रह की आपत्ति-दि. मूच्छांविषयत्व या कयाधुपाय विषयत्वरूप स्वत्व अमान्य नये ढंग से स्वत्व के निर्वचन में भी अन्योन्याश्रय विभिन्न प्रकार के स्वत्व पक्ष में अनुगत ध्यवहार अनुपपन्न तृष्णाशुन्य स्त्रत्वपर्याय अबाधकश्वेतारघर आहार और वनावि तुल्यरूप से अपरिग्रह ४० यत्रादि के धारण से प्रमाद की शंका का निरसन यत्रावि आत्मदर्शन के बाधक नहीं ४१ आहारवत् वनादि उपकरण दुस्त्यज ४२ वस्त्रधारण का विधान नियमविधिरूप ४ वस्नग्रहण में जीयोत्पत्ति आदि दोष का निरसन घनग्रहण के अनेकलाम पात्रग्रहण से अनेक लाश अभ्यन्तरतपविरोधी बायतप अग्राख २८ बबादि साक्षात्-परम्परया मुक्तिसाधक न होने की शंका का निरसन १९ दिगम्बर के मूल अतुमान में क्षतियाँ ५० बसग्रहण से पच्चक्वाण का भंग नहीं ५१
विषय अध्यातिपरिणति आरमधर्म नहीं है ५२ वनादि संनिधान में आत्मरति अबाधित ५३ स्वयंगृहीत तस्य में भी पति के अभाव का संभव संरक्षणानुबन्धि रौनध्यान को अवकाश नहीं अधापरिषह जय की भांति आचलक्यपरीपह विजय संचलकत्व आचेलक्ष्य का विरोधी नहीं ५८ तीर्थकरादि में भी पूर्ण आचेलय अप्रसिद्ध अनुकरण छोडो, आज्ञापालन करे ६० दिगभ्यरमतनिरसन उपसंहार ६१ पर्याय पदों से दर्शन की स्तवना समग्यदर्शन के अभिव्यंजक शमादि लक्षण मोक्षोपाय सभी को सुलभ क्यों नहीं? ६७ मुरुदशामें कोई भेदभाव नहीं होता ६८ प्रथमसम्यग्दर्शन के प्रादुर्भाव की शेष प्रक्रिया अपेक्षित कर्मस्थितिहास सर्वजीय में असम्भव पूर्वपूर्वगुणसम्पदा से उत्तरोत्तर गुपवृद्धि प्रथम सम्यग्दर्शन भी निर्गुण को प्राम नहीं होता भस्यत्य की शंका से योग्यत्य का निर्णय ७४ भवस्थितिकारक बुरित का ज्ञान उसके
नाश में सहायक सजीवों को मुक्तियोग्य मानने में आपत्ति ७६ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के उत्तरोत्तर परिणाम