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________________ स्या - टोका एवं हिन्दीविवेचन ] [१७ उपायचिन्तनमाह-- मूलम्-हेतुर्भवस्य हिंसादिदु:खायन्धयदर्शनात् । मुक्तेः पुनरहिंसादिया॑षाधाविनिवृत्तितः ॥१३॥ हेतु उपायः, भवस्य-संसारस्य, हिंसादिःहिंसा-ऽनृत-मिथ्यात्व-क्रोधादिः । कुतः १ इत्याइ-दुःखाद्यन्वयदर्शनात हिंसादिप्रवृत्ती विषयपिपासादिदुःखानुवन्धोपलम्मान , दुःखैकमो मतारे तारापीरित्याइ । मुपत्तेः पुमरहिंसादि: अहिंसा-सत्य-सम्यक्त्व-क्षान्त्यादिः हेतुः । कुतः १ इत्याह-व्याषाधाविनिवृत्तिता-अहिंसादिप्रवृत्ती विषयपिपासादिपीडानिवृत्तिरूपगुणानुपन्धोपलम्भात् , गुणैकमट्या मुक्ती तद्धेतृत्वौचित्यात् ।। १३ ।। एतच्चिन्तनफलमाहमूलम्-बुध्दवैध भवनैगुण्यं मुक्तेश्च गुणरूपताम् । तदर्थ चेष्टते नित्यं विशुद्धात्मा यथागमम् ।। १४ ॥ एवम्-उक्तरीत्या, भवस्य-संसारस्य, नैगुण्यं दोषकमयत्वम् , मुक्तेश्च गुणरूपतागुणकमयस्त्रम् बुध्न्वा, अशुद्धौदयिकादिभावत्वात् संसारस्य, मुक्तेश्च शुद्धसायिकादिभावरूपवाद , एतद्रोधश्च तदुपाययोधोपलक्षणम् । तदर्थ मुक्त्यर्थम् , चेष्टते=भव हेतुहिंसादिप्रतिषमनुषङ्ग को प्रसक्ति होगी, प्रतः यही बात मानने योग्य है कि तात्त्विक सुख विषयजन्य सुखों से बिलक्षण होता है और वही मुक्ति में उत्कर्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥ १३ वीं कारिका में मुक्ति के उपाय का प्रतिपादन किया गया है। कारिका का अर्थ इसप्रकार है-हिंसा, अन्त, मिम्यात्व, फोध आदि संसार का कारण है क्योंकि हिसा आदि को प्रवृत्ति में तृष्णा आदि से उत्पन्न दुःख के सम्बन्ध का अनुभव होता है। संसार एकमात्र दुःखमय है, अत: दुःखात्मक हिंसा आदि को हो संसार का कारण मानना उचित होता है। अहिंसा, सत्य, सम्यक्त्व, क्षमा आवि मुक्ति का हेतु है क्योंकि अहिंसा आदि की प्रवृत्ति में विषय की तष्णा आदि से उत्पन्न दुःख को निवृत्तिरूप गुण का उपलम्भ होता है । मुक्ति एकमात्र गुणमयी है अतः गुणमय अहिंसा आदि को उसका कारण मानना न्यायसंगत है ।। १३ ॥ [ भवनैगुण्यदर्शी को मोक्षार्थ निरन्तर उत्साह ] जिस पुरुष को आत्मा निमल होती है यह अशुद्ध औयिक (कर्मोदयजन्य) आदि भावों से भरे संसार को तथा उससे उपलक्षित हिसा आदि संसारोपाय को दुःखकमय, एव शुब्ब क्षायिक आदि भावों से भूषित मुक्ति को तथा उससे उपलक्षित अहिसा आदि मोक्षोपाय को गुणकमय समझकर संसार हेतुओं के प्रतिपक्षी हिसा प्रावि मोक्षोपायों को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील होता है। क्योंकि क्षुधा से पीडित व्यक्ति को जैसे भोजन को इच्छा बराबर बनी रहती है उसीप्रकार मुमुक्ष
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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