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[ शास्त्रवार्ता स्त० ८ इलो० २
विधायक हैं । अतः वह श्रवणांग नहीं हो सकता । क्योंकि, श्रवण का अंग वही हो सकता है जिसका विधान श्रवणार्थीमात्र के लिये हो ।
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तदवश्यं फले कल्पनीये केचिदाहुः
वेदान्तविज्ञान सुनिश्चितार्थाः संन्यासयोगाद् यतयः शुद्धसच्चाः । ते ब्रह्मलोके तु परान्तकाले परामृतात् परिमुच्यन्ति सर्वे ॥ १ ॥
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इति श्रुतेर्दग्धरथन्यायेनातुरसंन्यासविषयत्वम् । न हि परिपक्वयोगस्य तत्र गमनम् | नापि 'प्राप्य पुण्यकृतान् ० ' इत्यादेरातुरसन्न्यासविषयत्वम्, 'योगाच्चलितमानसः' इत्यादिनोपक्रान्तश्रवणादिविषयत्वेन प्रतीतेः । नापि कृतपापसंन्यासि विपयत्वम्, कल्याणाभिधानात् । तस्मात् साधनसंपन्नस्योत्पन्नश्रवणादिप्रत्ययस्यापरिपक्वस्य प्राप्य पुण्यकृतान्' इत्यादिवचनविषयत्वम् आतुरस्य शमाद्यसंपन्नस्याऽकृतश्रवणत्त्वेनानुत्पन्नप्रत्ययस्य 'वेदान्त विज्ञान ० " इत्यादिवचनविषयत्वम् । परिपक्वयोगस्य तु नोभयविषयत्वमिति । 'वेदान्त०' इत्यादिश्रुतेनिंगुणत्रह्मविषयत्वेन व्याख्यानेऽपि -
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' सन्न्यस्तमिति यो ब्रूयात् प्राणः कण्ठगतैरपि । सोऽचयल्लभते भोगान् पुनर्जन्म न विद्यते ॥ १॥
इत्यादिस्मृत्याऽऽतुरसंन्यासिनो ब्रह्मलोकं गतस्य तत्रोपदेशे सत्युत्पन्नज्ञानस्य मुक्तिः, इत्युपदेशद्वारा 'मुक्तिसाधनब्रह्मलोकगमनकाम आतुरः संन्यसेदिति विधिविपरिणम्यत इति ।
[ आतुरसंन्यास का फल क्या है ? ]
इस स्थिति में अब यह प्रश्न उठता है कि यदि आतुर वाक्य से संन्याससंज्ञक कर्मान्तर का विधान होता है तो उसका फल क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में कुछ विद्वानों का यह कहना है कि संन्यासफल के सम्बन्ध में एक ऐसा श्रुतिवचन उपलब्ध होता है जिसका अर्थ यह है कि "वेदान्त के अध्ययन से अर्थबोध प्राप्त अर्जित करने वाले शुद्धचित्त यति संन्यासयोग से ब्रह्मलोक में जाते हैं और वहां इस स्थिति को नियतावधि के अन्तकाल में वे सब वहीं से मुक्त हो जाते हैं।" इस प्रकार इस श्रुति को ऐसे संन्यास विधायकवावय की पेक्षा है जिससे विहित संन्यास का फल ब्रह्मलोकगमन हो और आतुरसंन्यासबोधक वाक्य को ऐसे वचन की अपेक्षा है जो ऐसे संन्यास का फल बतावे जैसा इस वाक्य से विहित है। इसलिये जिस का रथ दग्ध हो गया है और अश्व विद्यमान हो वह ऐसे व्यक्ति का संयोग चाहता है जिसके पास अश्व न हो किन्तु रथ हो । और रथ रखने वाला व्यक्ति ऐसे व्यक्ति की अपेक्षा करता है जिसके पास रथ न हो किन्तु अश्व हो अतः दोनों में सहयोग होने से रथ को अश्व की और श्व को रथ की प्राप्ति होती है उसीप्रकार ब्रह्मलोकगमन को संन्यास का फल बताने वाली श्रुति आतुरसंन्यासविषयक हो जाती है और आतुर संन्यास विधायकवचन ब्रह्मलोकगमन को संन्यास का फल बताने वाली श्रुति के सहयोग से अपने प्रतिपाद्य संन्यास की