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[ शास्त्रमा स्त० ८ श्लो० ७
परिपुष्ट निवृत्ति कही जाती है, क्योंकि कारण के उपचय से कार्य का उपचय होता है यह नियम है ।इस प्रकार अर्थ करने से यह श्रुति भी सम्यक श्रति हो जाती है। कहा भी गया है कि 'मिथ्याशास्त्र भो समयदृष्टि से ग्रहण करने पर सम्यक शास्त्र बन जाते हैं।'
एवं च 'अपञ्चो मिथ्या, दृश्यस्वात, स्वप्नरथवत' इत्यनुमानमपि निरस्तम्, मिथ्यास्वस्यात्यन्ताऽसवरूपस्य साध्यत्वेऽसख्यातिप्रसङ्गात् , अन्यथाप्रतीयमानत्वरूपस्य साध्यरवेऽन्यथाख्यातेः प्रसङ्गात् , अनिर्वचनीयस्वरूपस्य साध्यस्वे च साध्याऽप्रसिद्धः, स्वप्नरथादों तथात्वाऽसिद्ध्या दृष्टान्तस्य साध्यबैकल्यात । स्वाभावसामानाधिकरण्यरूपस्य साध्यत्वेऽप्ययमेव दोपः, स्वस्यैव पररूपेण स्वाभावसामानाधिकरण्यात । सिद्धसाधनं वा, परमार्थसत्ताऽभावस्य माध्यत्वेऽपि परमार्थत्वस्याऽनिरुक्तेः, परमार्थसचग्राहकप्रत्यक्षेण बाधाश्च । न चानुमानमिथ्यात्वं साधयन्तं लोकायतं प्रति यथा नानुमानबाधोपन्यासः फलवान्, तथोक्तप्रत्यक्षस्यापि प्रपश्चान्तंगतत्वेन मिथ्यात्वं साधयन्तमद्वैतरादिनं प्रति न प्रत्यक्षबाधोपन्यासः फलवानिति पाच्यम् , तथा सत्येतदनुमानस्यापि मिथ्यात्वेनाऽसाधकतयोपन्यासानुपपत्तेः । न चैतदनुमानमेव प्रत्यक्षबाधकम् , 'प्रत्यक्षवाधारहारे तदनुमानप्रामाण्यम् , एतदनुमानप्रामाण्ये च प्रत्यक्षबाधपरिहार' इतीतरेतराश्रयाव, अनन्यथासिद्धत्वेन प्रत्यक्षस्यैव बाधकत्वाच्च । न हि सत्वं विना 'सत्' इति प्रत्यक्षमुपपद्यते, शशङगेऽपि तत्प्रसङ्गात , उपपद्यते च मिथ्यात्वं विनापि दृश्यमिति ।
[प्रपञ्चमिथ्यात्व साधक अनुमान की दुर्वलता ] इसीप्रकार 'प्रपञ्च दृश्य होने से स्वप्नदृष्ट रथ के समान मिथ्या है-यह अनुमान भी निरस्त हो जाता है क्योंकि अत्यन्ताऽसत्त्वरूप मिथ्यात्व का साधन करने पर विश्व की ख्याति प्रसत्ख्याति हो जायगी। अन्यथाप्रतीयमानत्व रूप मिथ्यात्वका साधन करने पर विश्व को ख्याति-अन्यथा ख्याति हो जायगी ये दोनों ख्याति वेदान्ती को अनिष्ट है । यदि अनिर्वचनीयत्वरूप मिथ्यात्व का साधन किया जायगा तो साध्य की अप्रसिद्धि होगी। क्योंकि स्वप्नरथादि में अनिर्वचनीयत्व को सिद्धि न होने से दृष्टान्त में सायकल्य यति स्वाभावसामानाधिकरण्यरूप मिथ्यात्वक किया जायगा तो भी यही दोष होगा क्योंकि स्वप्नरथादि में स्वाभावसामानाधिकरप्य सिद्ध:
और प्रत्येक वस्तु का उसके अधिकरण में पररूप से अभाव होने से विश्वमात्र में स्वाभावसामानाधिकरण्य सिद्ध होने से सिद्धसाधन भी होगा। यदि परमार्थसत्त्वाभावरूप मिथ्यात्व का साधन किया जायगा तो परमार्थसत्व का निर्वचन न होने से साध्याऽप्रसिद्धि होगी। यदि किसी प्रकार उसका निर्वचन किया जा सकेगा तो प्रपञ्च में परमार्थ सत्त्व के ग्राहक 'घटः सन्-पटः सन्' इत्यादि प्रत्यक्ष से परमार्थसत्त्वाभाव के अनुमान में बाध प्रसक्त होगा ।
[ अनुमान में प्रत्यक्षमाध न होने की शंका का निराकरण ] इसके उत्तर में यदि यह कहा जाय कि-'जैसे अनुमानमात्र में मिथ्यात्व का साधन करने