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विषयानुक्रमः XXXXXXXXXXXX
पृष्ठांक विषय
पृष्ठांक विषय १ व्याख्याकार मंगलाचरण
१३ अचंता भेद से भिन्नाधार प्रतीति का उपशान्सि-पारव वीरजिनस्तवना मंगल
शवम-पूर्वपक्ष २ सम्यमों को निमन्त्रण
१३ भिन्न भिन्न स्थान में प्रत्यभिज्ञा की अनुपपत्ति । जन मनीषियों का मत-उत्पाबावित्रयमुक प्रगत
कीint ४ जंग मत से उत्पाद का स्वरूप
१३ मिन भिन्न स्थान से प्रात्यभिक्षा की उपपत्ति ४ उत्पाद प्रयत्नजन्य न होने को पका का निरसन १३ निरवछिन्न भाग की आधारसा प्रतीति ४ जापाच-नाश दोनों में प्रयत्नजन्यसा समान
पूर्वपक्ष में अनुपपन्न-उत्तरपक्ष ५ नाश और उत्पाद में वषम्य का का निरसन १४ माकामा मिरंश भामो पर उताविमेव । घटोहपाव भी आयक्षगसम्बाध से अतिरिक्त है
की अनुपपत्ति प्रयोगजायरा को विभाजक उपाधि मामने | १४ पूर्व-पश्मि आदि मेवायवहार से आकारमेव
में संभ १४ 'प्रयास काशी पूर्व में है' इस प्रयोग का ॥ प्रयत्नवग्यरको बाम-अवर्शन से विभाजन
विनम्यवावीकृत अर्थ की उपपत्ति १५ घिमण्यवादीकृत अर्घ अनुभवविध ७ यत्नमायस्व का दशांन-अवर्शन दिमागधीज है १५ नाम के दो प्रकार सामाविक, प्रयोगिक ८ बिलसाजन्य उत्पाद का स्वाय विवेचन ,, स्वामाविक उत्पाबकल्पना में पौष की
१६ घटविनाश होने पर मस्पिा के उम्मजा का
भय नहीं ए स्वामाविकोपाव की विविधता
... व्यावृत्ति
१७ सारे जगत् के हरय को उपपत्ति ॥ ऐकत्विक स्वाभाविक उत्पाद का स्वरूप
१७ उत्पाधादि को परस्पर में भिन्नामिनरूपमा १० कावितव्य में सावयवत्व सिद्धि
१८ उत्पादादि य के अनेक भंगों का निरूपण ११ इ पक्षा' इस पति कोसावयव
१९ एकलक्षण में अनंत पर्याय कले? ही उपपत्ति
२. अनंत प्रष्यसम्बध फा भान क्यों नहीं होता? , आलोकसामान्य को पक्षी-आधारतया प्रतीति २॥ वस्तु को अन्य पहायों में धर्मों से सम्बद्ध
असंभव
___मानने पर शंका-समाधान १२ मूर्तबध्याभाव में यी भाभारता की प्रसीप्ति ! २१ स्व-पर पर्याययों से वस्तु का अस्तित्वप्रयुक्त
मास्तित्व वियजन्य बुधि में क्षयोपशम के प्रभाव से । २३ घट-मुकुट-मुवर्ण के दृष्टान्त से रुप्य की आकाशका भान
उपपत्ति