________________
होती है तब मनेकान्तवाद में अनवस्थादि दोषों का आपादन मिग्रॅ किक है। संशय अप्रतिपति, विषयरूपवस्व हानि हत्यादि दूषण भी अनेकान्तवाद में नहीं हैं क्योंकि नय और प्रमाण से अन्योन्यस्यास
८
दाद सुनिश्चित हो जाता है। मूलकार ने का० ४३ से ४६ तक स्याद्वाद्रविरोधी देवबन्धु नादि हो मा का उलेख करके की ओर से किये गये लाक्षेत्रों का का० ४७ से निराकरण दिखाया है। का०४८ को व्याख्या में गुड़ और सूठ के मिश्रण के दृष्टान्त से स्याहार का हृदयंगम समर्थन किया गया है। धागे चलकर अन्धकार का कहना है कि 'तस्य किवि' इस्पाविस्थल में बच्ठी प्रयोग की अनुपपत्ति से ही केवल भेव पक्ष बाधित हो जाता है (का० ५०) इस तरह प्रत्यकार ने स्तबक की पूर्णाहुति तक स्पावाद का अनेक दृष्टान्त और अनेक काव्य युक्तिओं से सुदर समर्थन कर दिखाया है जो प्रकार की उच्च एवं निर्मण प्रतिभा का प्रतीक है। स्याद्वादनिरूपण के उपसंहार में या कार ने अन्त में सुंदर उपसंहार प्रस्तुत किया है जो अत्यंत मननीय है।
सम्पूर्ण सातवें स्तबक के निरूपण को प कर किसी भी तटस्थ मुमृसु अध्येता को यह महसूस होगा कि स्याद्वाद के अध्ययन विना उसे अच्छी तरह समझे बिना तथा जीवन के अनेक क्षेत्रों में स्पादादष्टि को अपनाये विना विश्व की समस्याओं का अन्त आना कठिन है । अत्यकार ने भी अन्त में दिखाया है कि अन्योन्य समभाव की अनुभूति स्याद्वाद के सहारे ही हो सकती है, अन्यथा परवादीयों में तस्वचर्चा के बहाने सबों का कभी अन्स आने वाला नहीं है ।
1
सचमुच, स्याद्वाद यह एक महान बाद है, दिव्य औषधि है, नयी रोशनी है, मानवजीवन का महंगा आभूषण है। जिन गुरुदेवों की करुणा से ऐसे महान स्याद्वाद तत्व का कुछ सशेष मिला उन को कैसे भूल सकेंगे । न्यायविशारद पूज्यपाद प्राचार्य भगवंत श्रीमद विजय भूषममाधुरीस्वरको मद्दाराज का, तथा उनके शिष्यरश्न समाधिसाधक स्व० प० पू० मुनिराज श्री बसंघोषविजयजी महाराज के शिष्यालंकार गीतारत्न सिद्धान्त दिवाकर आचार्यदेवश्री विजय घोषसूरिजी महाराज का करुणाभंडार यदि मेरे लिये बंद होता तो स्माद्वाद जैसे महान तत्व से मैं तो सर्वचा अबूझ ही रह जावा । शास्त्रवार्त्ता का सुवाथ्य सम्पादन भी उन्हीं पूज्य गुरुयों की कृपादृष्टि का एक कटा है।
जाता है कि ऐसे महान् स्याद्वाद तत्व का अमृतपान कर मुमुक्षु अध्येता वर्ग एकान्तवाद के विष का मन कर देंगे और मुकिमा में कदम बढाते रहेंगे।
फाल्गुन गुगल १ वि० सं० २०४० पाँचौ (खानदेश)
}
लि०मुनि जयसुन्दरविजय