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________________ मा.सटीका एवं हिामी विवेचन ] सस्यादिकल्पनागोरवेणकव्यक्तैरेव कश्चित्प्रतिनियनव्यक्त्यभेदस्य प्रत्यभिज्ञासिद्धस्य स्वीकनु - मुचितवादिति । तस्माद सामान्य विशेषरूपतया गोरसदृष्टान्तेनोत्पाद-यय-धौम्यात्मक वस्तु सिद्धम् ।। ३॥ [सामान्यविशेषोभयात्मक वस्तुस्वरूप की प्रतीति ] उक्त विचारों के निष्कर्षस्वरूप यही मानना उचित है कि वस्तु सामान्यविशेष उमपारमान ही होती है। विशेषानामा सामान्य का और सामान्यानात्मक विशेष का अस्तित्व अप्रामाणिक है। सामाग्यवियोवामा वस्तु ही विशेषाण की प्रधानरूप से विवक्षा न होने पर प्रति आश्रय में धनुगत होती है, और विशेषांश की प्रधानरूप से विषक्षर करने पर वर विशिष्ट वस्तु में अनुगत होती है, को विशिष्ट स्व और पर से स्यापूस होता है। यह उसका स्वभाव है कि चित्राक्षयोपशम अर्थात् कभी विशेषांश का आवरण करते ये सामान्यांश के शानावरण का, प्रौर कभी सामान्यांश का वाक्षरण करते हुपे विशेषता के प्रश्नावरण का सायोपशाम होने से कभी विशेष को परेप और सामान्य को प्रधान, और कभी विशेष को प्रधान और सामान्य को गौण करके परस्पर मोलितरूप में वस्तु भासित होती है। जैसे हि महानसीयत्व भावि धमों से विशिष्ट होने से विशेषात्मक और पलित्वरूप सामान्यधर्म से विशिष्ट होने से सामान्यारमक होता है। तथा महानतीयाम आदि विशेषरूप की प्रधानरूप से विवक्षा न होने पर बसिसामान्यरूप सभी वलि में अभुगत होता है और महानसीयःय आदिको प्रधान रूप से विवक्षा होने पर महानसीयस्वादि विविष्ट वह्विसामान्य विभिन्न महानसोय वह्नियों में अनुगत होता है और अविचिण्ट लिसामाग्म का प्रयापक होने से अविष्टि, 'स्व' से व्यावृत्त और घट्पटादि 'पर' से ज्यावत होता है। तथा जब महानतीमत्वादि विशेषांश का संवरण करते इपे पश्विसामान्यांश के शानावरण का भयोपशम होता है तब महामसोयवह्नि का वद्धिसामान्याकारण प्रतिभास होता है और अब सामान्यांश का संवरण-प्रधानरूप से विवक्षापूर्वक विशेषांश केशानावरण का क्षयोपशाम होता है तम केवल बतिसामान्यरूप से आमास न होकर महामसीयपह्नि रूप से प्रामास होता है। इस प्रकार वस्तु को सामान्यविशेषात्मक मानने पर ही घटविषयक बुद्धि में घटत्य के समान घटांश में भी अनुगसाकारता सम्पन्न होती है। एवं महानसोयधूम के अभिमुन होने पर धूमसामान्य में वह्निसामान्य की माप्ति का पहण पवंतीघादि धम में भी पर्यवसन्न होता है। क्योंकि उस समय धूम के महानसीसत्यरूप विशेषकार का संवरण होकर धूमसामान्य में ही बलिव्याप्ति का पहरण होता है। [प्रथम दर्शन में ही व्यापकरप से व्याप्तिज्ञान का उदय ] इस संदर्भ में नगापिकों का यह कहना कि-'महानसोयधूम में महामसोयहि का म्याप्तिमान होने के बार सामान्य लक्षणाप्रत्यारासि से समस्त पम और पति की उपस्थिति होकर ताल धूम में सफल वह्नि का व्याप्तिज्ञान होता है'-ठीक नहीं है क्योंकि पहले महामसीधश्म में महामसीयबालिका व्याक्तिमान और भाव में धूमसामान्य में वह्विसामान्य के स्याप्तिज्ञान का होगा भानुभविक रही है किन्तु महानसोय धूम के मभिमुख होने पर अयोपाम विशेष से अर्थात महामसोयत्व का संवरण झोकर धमसामान्य और पश्निसामाग्य के शानावरण के अयोपवाम से महानसीयत्व का
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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