SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्या.क. टोका एवं हिन्दी विवेचन ] २२१ "गुडो हि कफहेतुः स्याद् नागरं पित्तकारणम् । द्वयात्मनि न दोषोऽस्ति गुडनागरमेषजे ॥१॥" इति । अथोक्तदोषनिवृत्तिर्न जात्यन्तरनिमित्ता, किन्तु मिथोमाधुर्य-कटुकल्बोत्कर्पहानिप्रयुक्तेति चेत् ? न, द्वयोरेकतरबलवच्च एवान्यापकर्षसंभवात , तन्मन्दतायामपि मन्दपित्तादिदोषापत्तेश्च । एतेनेतरेतरप्रवेशादेकनरगुणपरित्यागोऽपि निरस्तः, अन्यतरदोषापत्तेः, अनुभवबाधाच्च । अथ मिलिगुड-शुण्टीक्षोदेन नैकं द्रव्यमारभ्यते, विजातीयानां द्रव्यानारम्भकत्यात , गुडत्व-शुष्टीस्पसंकरप्रस#lt: फिन्तु कारगविशेषोपनीतरसविशेषवद् गुड-शुण्ठीक्षोदसमाजादेव धातुसाम्याद् गुण-दोषनिवृत्ती इति चेत् ? न, सामुदितगुड-शुण्ठीद्रव्यस्याप्येकत्वपरिणतिमत एवोपलम्भात् , धातुसाम्ये रसविशेषवद् द्रव्यविशेषस्यापि प्रयोजकत्वात् , द्रव्यादिवचिच्यादाहारपर्याप्तिवैचित्र्योपपत्तः, अनेकान्ते सांकर्याऽसंभवात , नृसिंहत्ववदुपपत्तः । अथ समुदितगुडशुण्ठीद्रव्यं प्रत्येकगुड-शुण्ठीभ्यां विभिभमेकस्वभावमेव द्रव्यान्तरम् , न तु मिथोऽभिव्याण्यावस्थितोमयस्वभावं जात्यन्तमिति चेत् ? न, तस्य द्रव्यान्तरत्वे विलक्षणमाधुर्यकटुकस्वाननुभवप्रसङ्गात् , एकस्वभावल्वे दोषद्वयोपशमाऽहेतुत्वप्रसङ्गाद , उभयजननकस्वभावस्य चानेकत्वगर्भत्वेन सर्व थैकत्वाऽयोगात् , एकया शक्त्योभयकार्यजननेऽतिप्रसङ्गात् , विभिन्नस्वभावानुभवाच । तस्माद् माधुर्य-कदुकस्वयोः परस्परानुवेधनिमिचमेवोभयदोषनिवर्तकत्वमित्यादरणीयम् । [विजातीय वस्तु में प्रत्येक दोष का निराकरण ] इस विषय में यह साम्प्रदायिक मान्यता है कि प्रत्येक में जो वोष होता है वह उन दोनों के विजातीय रूप में निष्पन्न हो जाने पर नहीं होता। यह देखा गया है कि केवल गुड़ से कफ को दि होती है और केवल सोंठ से पित्त की वृद्धि होती है किन्तु वोनों के योग से जब एक विजातीय औषषि बन जाती है तब उस औषधि के रूप में गुड़ और सोंठ का सेवन होने पर भी कफ और पित्त की वृद्धि नहीं होती, जैसा कि-चिकित्सा शास्त्र में कहा गया है कि-'गुड़ कफ का कारण होता है और सोंठ पित्त का । किन्तु दोनों के मेल से जब 'गुरुनागर' औषधि बन जाती है सब प्रत्येक से होने वाला बोष उमयात्मक औषधि से नहीं होता। [ दोप के उत्कर्ष की हानि की बात अयुक्त ] यदि यह कहा जाय फि-गुड़ और सोंठ के योग से उक्त दोष की निवृत्ति विजातीय उत्पत्ति होने के कारण नहीं होती किन्तु सोंठ की कटुता से गुड़ के माधुर्य की अधिकता और ग्रह के माघ से सोठ को बदता की अधिकता को हानि होने से होतो है-त। यह ठीक नहीं है, क्योंकि गुड़ और सोंठ दोनों में एक के बलवान् होने पर ही अन्य का अपकर्ष हो सकता है, दोनों के समान बल होने पर किसी से किसी का अपकर्ष नहीं हो सकता। और दूसरी बात यह है कि दोनों तव्यों का योग होने पर एक दूसरे से दोनों के गुणों में न्यूनता हो जाने पर भी मन्द होकर दोनों के अपने गुण समान रहेंगे। अतः दोनों का योग होने पर कफ और पित्त को अषिक वृद्धि न होने पर भी मन्द
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy