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________________ स्या० क. टोका एवं हिन्धी विषेचन । २२७ ४४वीं कारिका में पूर्व वादियों का वक्तव्य अंकित किया गया है। कारिका का प्रपं इस प्रकार है-द्रव्य और पर्याय में यदि भेद माना जायगा तो एक वस्तु में द्रष्य-पर्याय उमयरूपता को सिद्धि नहीं हो सकती है और यदि अमेद माना जायगा तो यह एक की स्थिति और अन्य की निवृत्ति की अर्थात् व्यरूप अन्वय और पर्यायरूप विच्छेव को उपपत्ति न हो सकेगी क्योंकि उसी वस्तु को स्थिति और निवृत्ति एक साथ में प्रसंगत है ।। ४४ ।।। अत्रेय हेतुमाहमूलम् -'यन्निवसौ न यस्येह निवत्तिस्तत्ततो यतः । भिन्न नियमतो दृष्टं यथा कर्कः क्रमेलकात्॥ ४५ ॥ इह-जगति यन्निवृत्तौ यस्य न निवृत्तिस्तदनिवर्तमानं तप्ता निवर्तमानात् यतायस्मात् नियमतः समान्यव्यासिवला भिन्नं दृष्टं भिन्नमनुमितम् । निदर्शनमाह-यथा कर्क: अश्वविशेषः, क्रमेलकात-उष्ट्राद् निवर्तमानाद् अनिवर्तमानो मिन्नो दृष्ट इति भावः ॥ ४५ ॥ ४५वीं कारिका में पूर्व कारिका को उक्ति का समर्थक हेतु बताया गया है कारिका का अर्थ इस प्रकार है-मिस वस्तु की निक्ति होने पर जो वस्सु निवृत्त नहीं होती है वह पनिवृत्त होने वाली वस्तु से मिन्न होती है, यह सामान्य नियम है-जो निवर्तमान उष्ट्र से निवृत्त न होने वाले कर्क-विशेष प्रकार के अश्व में दृष्ट है । इस नियम के बल से यह अनुमान निर्वाधरूप से हो सकता है कि पर्याय के निवृत्त होने पर भी निवृत्त न होने वाला द्रव्य पर्याय से मिन्न है अतः पर्मायात्मक वस्तु का अस्तित्व नहीं हो सकता ।। ४५॥ निदर्शितार्थमेव प्रकृते योजयन्नाहमूलम्--निवर्तते च पर्यायो न तु द्रव्यं ततो न सः। ___ अभिन्नो द्रव्यतोऽभेदे-निवृतिस्तत्स्वरूपवत् ॥ ४६॥ निवर्तते च पर्यायः पिण्डादिः, न तु द्रव्यं मृदादि । ततः सा पर्यायः द्रव्यतोऽभिलो न किन्तु भिन्न एव, यतोऽभेदे तत्स्वरूपवत्-मृद्रव्यस्वरूपवत अनिवृत्तिः स्यात् पर्यायस्य । अथवा, नमोऽप्रश्लेषे निवृत्तिः स्याद् मृद्रव्यस्य, तत्स्वरूपवत्-पर्यायस्वरूपचदिति व्याख्ययम् ॥ १६ ॥ ___४६वीं कारिका में पूर्व कारिका में निशित अर्थ का प्रस्तुत में उपनय किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है-द्रव्य और पर्याय के मध्य पर्याय की यानी पिण्डाद को निवृत्ति होती है किन्तु द्रभ्य की अर्थात मृत्तिका आदि की निवृत्ति नहीं होती। प्रतः पर्याय द्रध्य से अभिन्न नहीं हो सकता और यदि अभिन्न माना जायगा तो पर्याय को निवृत्ति होने पर पर्याय के समान ही द्रव्य की मी निवृत्ति होगी। अथवा जैसे द्रव्य नहीं निवृत्त होता उसी प्रकार पर्याय को भी निवृत्ति न होगी ॥ ४६॥
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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