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________________ स्थाका टोमा एवं हिन्दी विरेचन ] द्वितीयस्तु गगन-धर्माऽधर्मास्तिकायानामवगाहक--गन्त-स्थावन्द्र व्यसनिधानतोऽवगाहन-गति स्थितिक्रियोत्पतेरनियमेन स्यात्परप्रत्ययः, मनिमदमतिमवयवद्रव्यद्वयोत्पाद्यत्वात अवगाहनादीना स्यादिकविकः स्यादनकत्त्विकरचेति भावः । तदुक्तम्-[सम्मति प्र०-१३० ] ** साभाविओ वि समुदयकउ न एगत्तिड ब होआहि । आगासाईआणे तिण्ई परपञ्चोऽणियमा ॥१॥" इति । [स्वाभाविकोत्पाद की विविधता] स्वाभाविकोपाव के वो मेव हैं-[१) समुदयनित और (२) ऐकस्विक । उन में को उत्पाद भूतिमायारमक अवयवों से निष्पन्न होता है वह तमुवयनित कहा जाता है। उस से भिन्न स्वमाबजनितोत्पाद को ऐकत्विक कहा आता है। हम में प्रथम है अनादि का उत्पाद । पहा यह विशेष ज्ञातव्य है कि पावितव्य भी रितीयतसीमावि क्षणों में पहले के जैसा ही नहीं रहता किन्तु पूर्वक्षणोत्पत्रपर्यायविशिष्टात्मना उत्तरक्षण में उस का माश होता है और विशिष्ट का मास विशिष्टोत्पावधाप्य होता है इसलिये उन क्षणों में नम्रीनपर्यायविशिष्ट घटादिका उत्पाद भी होता है और यह उपाय पुरुषव्यापार से अन्य और मसिमथ्यात्मक अवयवों से प्रारम्ध होता है प्रतः यह भी स्वाभाविक समुवयजनित उत्पावरूप है। पर भी जान लेना जरूरी है कि भूप्तिमनध्यावपवारस्यस्वरूप जो समुबयजनितरव है यह मुषियवसपोगकृतस्त्र रूप नहीं हो सकता योकि ऐसा मानने पर स्थलब्ध के विभाग से होनेवाले परमाणु आधि के उत्पाद में अध्याप्ति होगी। किन्तु, मूतापवनिमसस्वरूप है और विभक्तावस्थ परमाणुरूप अवयव में भी अवस्था विष की अपेक्षा मूर्ती.. बपनियतत्व है । आप माह है कि किसी स्थसमय का विभाग होने पर जब उस के परमाणु विकीगं हो जाते हैं उस अवस्था में उन में मृविपच का सम्बन्ध नहीं रहता किन्तु वह जिस स्थलास्य के विभाग से विकोण हुआ है उस स्थलाध्य को अवस्था को अपेक्षा मूवियव से सम्बद्ध होता है पयोंकि उस स्पूलद्रय के पवित्रतावस्था में उस के घटक सभी परमाण परस्पर सम्मान होते है। [ऐकन्त्रिक म्वाभाविक उत्पाद का स्वरूप] ऐकस्मिक स्वाभाषिक उत्पाद काल पा प्रत्यय पानी अन्याधीनवृत्तिका होता है, क्योंकि आकाश, धर्म और अधर्म रूप प्रस्तिकाय द्रव्यों में अवगाहक गन्ता और स्थाता बश्य के सानिधानमा से, अर्थात अवगाहनादि किसानों के आधारसापर्याय के बिना अवगाहन, गति और स्थितिरूप क्रियाओं की उत्पत्ति का नियम नहीं है । तात्पर्य यह है कि प्रयगानावि क्रियाएं मृत्तिमवरपव इस्य पौर अमूसिमक्वयय कपरूप प्रपतय से उत्पन्न होती है, इसलिये ऐकरिषमस्वाभाविक उत्पाद केवल ऐकस्विक ही नहीं होता किन्तु कपित ऐकश्विक और सचिन अनेकत्विकरूप होता है । कलने का भाग्य यह है कि आकाशावि में अवगाहकाधि प्रज्य के संमिथान से आकाशावि वष्य में अवगाहनादिअधिकरणसाप पर्याय उत्पन्न हो जाने पर यदि ताश पर्मय विशिष्ट गगनादि में ही कारणत्व की विषक्षा की जाए तो उस विवक्षा से माकाशावि का उत्पाव ऐत्विक और उक्त अधिकरणतारूप * स्वाभाविकोऽपि समुस्यतो नाल्विको वा भविष्यति । आकाशादिकानां त्रयाणां पर प्रत्ययोऽनियमात् ॥ १।।
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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