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________________ स्या.क. टोका एवं हिन्दी विवेचन ] मत्' इन दोनों में भी बलक्षण्य सिद्ध होता है। पहले शान में संयोग तादात्म्यश्व रूप से और दूसरे में संयोगत्व रूप से प्रकारतावच्छेदक होता है । "अथवा यह कहा जा सकता है कि तादात्म्य अतिरिक्त ही है, क्योंकि तत्सद वस्तु का तादात्म्यत्व यदि तत्तद्वस्तु में विद्यमान गुण आदि विभिन्न पदार्थों में माना जायगा तो जहाँ तादात्म्य सम्बन्ध कारणतावच्छेदक होता है वहाँ कारणवृत्ति गुण आदि भिन्न पदार्थों में कारणतावच्छेकत्व को कल्पना होने से गौरव होगा 1" यह कथन भी समीचीन नहीं है क्योंकि अतिरिक्त तादात्म्य सम्बन्ध को कल्पना अनुपपन्न है। शवल वस्तु विशेष को स्वीकार किए बिना उसकी बुद्धियों में विशेष की उपपत्ति नहीं हो सकती, तथा संयोगी और संयोगिवान में ही कश्चित् विशेष का अनुभव होता है। किश्च, अत्यन्तभिन्ना-ऽभिन्नाभ्यां व्यावृत्तं सामानाधिकरण्यमपि भेदाभेदे प्रमाणम्, भेदाभेदोमयत्वेन साध्यत्वे साध्या प्रसिद्धेरभावात् । साध्यतावच्छेदकावच्छिन्नस्य हि प्रसिद्धिरपेक्षिता, न टेकत्र तत्प्रसिद्धिरपि, गौरवान्, घटे घटत्वसत्तोभयानुमित्युच्छेदप्रसङ्गाच्च । एतेन 'एकान्तभेदाभेदान्यतराभावस्य भेदविशिष्टाभेदस्य वा साध्यतायां साध्या प्रसिद्धिः, प्रत्येकं साध्यतायां चासाधारण्यम्' इति निरस्तम् । न चोभयत्वमप्येकविशिष्टापरत्वमेवेत्युक्तदोषान तिवृत्तिरेवेति वाच्यम्, अविशिष्टियोरपि गोत्वा-ऽश्वत्त्रयोरुभयत्वप्रत्ययात् । न चैवं स्वतन्त्रभेदाभेदोभयसिद्धावपि मिलिततदुभयासिद्धयोदेश्यासिद्धरर्थान्तरन्थम् , अन्तर्मु खव्याप्त्या मिलितत्वसिद्धेः अन्यथा पर्वते वह्विसामान्यसिद्धाबपि पर्वतीयवह रसिद्धप्रसङ्गात् । इत्यन्यत्र विस्तरः । [समानविभक्तिवाले पदों के प्रयोग से भेदाभेद की सिद्धि सामानाधिकरण्य यानी समान विभक्ति वाले पदों का प्रयोग भी भेवामेव में प्रमाण है, क्योंकि यह अत्यन्त भिन्न और अत्यन्त अभिन्न में नहीं होता, जैसे 'घट: पटः' ऐसा प्रयोग एवं 'घटो घट:' ऐसा प्रयोग मान्य नहीं है। किन्तु नीलो घटः' इस प्रकार नील घट का सामानाधिकरण्य मान्य है । इससे सिद्ध होता है कि नील और घर में भेवाभेद है अन्यथा 'घटः पट:' और 'घटो घटः' के समान 'नोलो घटः' प्रयोग भी न होता। उक्त सामानाधिकरण्य भेदाभेद में अनुमान के रूप में प्रमाण है, जिसका प्रयोग इस प्रकार हो सकता है कि 'घट नील से भिन्नाभिन्न है क्योंकि नील पद के समानविभक्ति वाले पद से व्यवहस होता है। जो जिससे भिन्नाभिन्न नहीं होता वह उसके बोधक पद के समानविभक्तिवाले पद से व्यवहुत नहीं होता जैसे घट पद के समान विभक्तिवाले पद से व्यवहृत होने वाला पट और घट ।' यदि यह कहा जाप कि 'नील का भेदाभेद इस अनुमान प्रयोग के पूर्व सिद्ध नहीं है अतः नील के भेदाभेद का साध्य के रूप में प्रयोग करने पर साध्यासिजि होगी'-ठीक नहीं है, क्योंकि नोल. भेव और नीलाभेद उभयरूप से नोल के भेदाभेद को साध्य करने पर साध्याऽप्रसिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि नील का भेव और नील का अभेद दोनों अलग-अलग प्रसिद्ध है । अतः साध्याऽप्रसिद्धि योष नहीं हो सकता, क्योंकि साम्यतावच्छेदकामच्छिम्न की ही प्रसिद्धि अपेक्षित होती है न कि उसकी एक प्राधिकरण में प्रसिद्धि अपेक्षित होती है, क्योंकि वेसा मानने पर गौरव होता है। और दूसरी बात यह है कि यदि एक अधिकरण में साध्यतावच्छेदकावच्छिन्न की प्रसिद्धि अनुमान के लिए अपेक्षित
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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