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[ शास्त्रवास्ति० ७ श्लो० ३३
[ पृथक् शब्द का समवेतन्व अर्थ नहीं ] गदि मह कहा ला कि पशक पद का अर्थ है असमवेतत्व । प्रतः 'नीलं न घटात पृथक से नीलरूप घट में असमवेत नहीं है यह बोध होता है तो यह ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर 'घटो न नीलाव पृथक्-घट नील से पृथक नहीं है। इस प्रतीति की उपपत्ति नहीं होगी, क्योंकि पृथपरव का असमवेतत्व अर्थ मानने पर घट में नीलासमवेतस्वरूप नीलपृथक्त्व के रहने से घट में उसके भभाव को प्रतीति नहीं हो सकती और दूसरी बात यह है कि यदि पथक्त्व को प्रसमवेतस्थ रूप माना जायया तो 'घटो घटत्वात न पृथक-घट घटत्व से पृथक नहीं है इस वाक्यार्य को अनुपपत्ति हो जायगो । क्योंकि पृथक्त्व के असमवेतत्व रूप होने में 'घटरमात न पृथक' का अर्थ होगा घटस्यसमवेतस्वाभावाभाव का प्राश्रय, जो घटत्व में किसी वस्तु के समवेत न होने से घटत्वसमवेलस्य की प्रसिद्धि होने के कारण असम्भव है।
किञ्च, 'घटो घटाद् न पृथक् इत्यत्राभेदरूपमपृथक्त्वं प्रतीयते, इत्यन्यत्रापि तदेव । न हि पृथक्त्वं भेदादतिरिच्यते, 'घटः पटात् पृथक्' इत्यस्य 'पटाद् भिन्नः' इतिविवरणात , पृथगादिपदयोगे पश्चम्या आनुशासनिकत्वादेव 'घटान्न' इत्यादेरसंभवात् । तदेव चाऽपृथक्त्वं तादात्म्यमिति गीयते यत् प्रत्यभिज्ञानादिनियामकम् । अत एव पाकरफ्ते घटे 'अयं न श्यामः' इति 'श्यामाद् न पृथक्' इति चोपपद्यते, अन्यत्वरूपभेदस्य पृथक्त्वरूपभेदाभावस्य चान्योन्यानुविद्धस्योपपत्तेः । न हि 'पृथक्त्वमन्यत्वमेव' इति नव्यनैयायिकानामिवास्माकमेकान्ताभ्युपगमः, येनानुपपत्तिः स्यात् । न च तेषामप्यत्र 'न पृथक' इत्यस्य 'तत्तद्वयक्तित्वावच्छिअभेदाभाववान्' इत्यर्थाद् नानुपपत्तिरिति वाच्यम , सामान्यसंशयाऽनिवृत्तः, श्यामपदस्य लक्षणां विनापि यथाश्रुतार्थप्रतिसंघानाच्च ।
[ पृथक्त्व से अतिरिक्त भेद अमिद्ध है ] दूसरी बात यह है कि 'घट घट से पृथक नहीं हैं। इस वाक्य से घट में घटामेद रूप घट के अपृथक्ष की प्रतीति होती है । अतः अन्यत्र भी 'पृथक नहीं है' इस शब्द से अमेदरूप अपृथस्य का ही सोश माममा अषित है क्योंकि पथश्व मेद से भिन्न नहीं हैं यह बात 'घट पट से पृथक है' इस वाक्य के 'घट पट से भिन्न है' इस विवरण से सिद्ध होती है। यदि पथक्ष मेद से भिन्न होता तो पृथक शम्व का भिन्न शब्द से विवरण न होता । ऐसा मानने पर यह शङ्का नहीं की जा सकती कि पृथक पर्व और ना को एकार्थक मानने पर जैसे पथक पद के योग में पश्वमो होने से 'घटात् पृथक' यह प्रयोग होता है उसी प्रकार नज पद के योग में भी पञ्चमी सम्भव होने से 'घटात् न' इस प्रयोग की आपत्ति होगी'-क्योंकि पृथक् आदि पद के योग में ही पञ्चमी का अनुशासन है, न कि उनके समानार्थक पद के भी योग में, अतः उक्त शङ्का उचित नहीं है।
[अपृथक्त्व ही प्रत्यभिज्ञानादिनियामक तादात्म्य है ] न पृथक शब्द से जिस अपृथक्त्व का बोध होता है उसे तादात्म्य कहा जाता है और वही प्रत्यभिज्ञा आदि का नियामक है । इसीलिए पाक द्वारा रक्त घट में 'अयं न श्यामः' और 'मयं श्यामात