SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय दर्शनशास्त्र के अम्यासो न एवं जंतर वर्ग के कर कमल में इस प्रत्यरश्न का अर्पन करते हुए वर्णनीय आनंद का अनुभव हो रहा है। शास्त्रबार्ता समुच्चय के १ से ८ सबक पूर्व प्रकाशित है किन्तु उनमें सात अवशिष्ट या वह आम प्रकाशन की शिशि पर उदय प्राप्त कर रहा है। उसके उज्जवल प्रकाश से सारा नामिक जगत् आलोकित होगा इसमें कोई संदेह नहीं। २०१० और १२ तीन शेष रह जाते हैं उनको भी प्रभासोध प्रकाशित करने के लिम हो है, शासनवेव की कृपा से यह कार्य भी पूरा हो जायेगा । पूज्यपाद न्यायमिशारा भीमद् विजय भुवनभरनुवरश्री महाराज की महती कृपा हमारे प्रकाशन में सात अनुवर्तमान है इसे हम हमारा परम सौभाग्य समझते है। पंडितराज भी बदरीनाथजी शुक्ल महोदय भी हमी विवेचन के कार्य को मलो मांति निभा रहे हैं जो निःशंक मनाना है। तदुपरांत छोटे-बड़े न संघों की ओर से ऐसे बड़े अपराध के मुद्रण- प्रकाशन में जो आर्थिक सहयोग मिलता आया है उसको केसे मिसर जाय ? ! प० पू० मुनिराज श्री हेमरामविजयजी महाराज की प्रेरणा से इस सात स्तबक के सुरण में नागपुर (महाराष्ट्र ) वास्तवध प्रवे० ० जैन संघ के माननिधि में से हमें जो विराट् सहायता प्राप्त हुयी है एवं हम उनके प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हैं। इस विभाग में जैन दर्शन के अनेकान्तवाद की सयुक्तिक प्रतिष्ठा की गयी है। उसके तलस्पर्शी अध्ययन से मुमुक्षु प्रवासी व आत्मश्रेय में आगे यही शुभेच्छा विष्य वर्शन ट्रस्ट की ओर से कु० वि० शाह
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy