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________________ ।। अईम् ॥ हिन्दी विवेचनालंकृत स्याद्रादकल्पलताब्याख्या विभूषित * शास्त्रवासिमुच्चय * [सप्तमः स्तबकः ] [प्याख्याकार मंगलाचरणम् ] चश्चत्फताबनकान्तकान्तिरनिर्श गीर्वाणजुदान्तिको, __विक्रान्तिक्षनशत्रुरस्तजननान्तिः सतां शान्तिभूः । शान्तिस्तान्तिमपाकरोतु भगवान् कल्याणकन्पटुमो, धीरा यस्य सदा प्रयान्ति शरणं पादौ शुभप्रार्थिनः ॥१॥ आसीत् पल्पदयोः प्रणामसमये शकस्य चक्रप्रमो, लोलन्मौलिमयूखमसिलरुचा विस्तारिणीना स्यात् । श्रीयामातनयस्य तस्य हृदये धत्तः पदों चेत्पदं, तति नाम सुर-कामकलश स्वर्धेनवो नान्तिक १॥२॥ आगञ्छन्त्रिपदीनदीसमुदयभामग्रोच्छलत तर्कोमिप्रसरस्फुरचयरयस्याद्वादफेनोनयः । यस्याप्रापि विमृत्व से विजयते स्पाद्वादरत्नाकर, तं वीर प्रदिध्महे विजगतामाधारमेकं जिनम् ॥ ३ ॥ पीनेऽन्ययाकलुपोदफेऽपि नोच्छियते तत्त्वपिपासया वः । आकर्णयन्त्याईतशास्त्रवाता फर्णामृतं संप्रति तव सकाः ॥ ४ ।। [ शान्तिजिन-पाजिन-बीरजिन की स्तवना-मंगल ] स्याख्याकार ने मे सबक के मंगल प्रारम्भ में सर्वप्रथम एक पत्र से भगवान शान्तिनाप को महिमा का ब्रासन करते हुये उन से लोककल्याण के लिये प्रार्थना की है। पथ का अर्थ इसप्रकार है
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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