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पृथ्ठांक
विषय
२१६ द्वन्द्वसमास पदार्थमेव नियत मामना होगा २१७ पूर्वपक्षेोकल्पित इनियामक में दोषोद्भावन २१७ पर्याय में वास्तवमेद न होने को शंका का निवारण २१८ मेवाभेव में विशेष उठाना जड़ता का प्रदर्शन २१ एकान्तमेव और अमेव में विरोध संग २४ द्रव्य और उसके धर्म एक दूसरे को छोडकर नहीं होते
१९ परस्परनिरपेक्ष द्रव्य और अि २२० मेव असेब के सामानाधिकरण्य में विरोध
का अमाव
२२० मेवामेव में सहानवस्थान का नियम मलि २२१ रूप मेदामेर में भी अनवच्छिन्नस्व २२१ रूप और गन्ध का अबच्छेदक स्वभावभेद २२२ अनवस्थावि पांच दोष का आपादान २२३ अनेकान्तवाद में समवस्थावि शेष का निराकरण
२२३ केवल भेद में शक्तिग्रह का असम्भव २२४ एकीकृत विकल्पों में अर्थशून्मता २२४ एकासवाद के विकल्प युक्तिशून्य २२५ संशय और अतिपति बोयुगल का प्रतिकार २२६ मय और प्रमाण से संज्ञपावि का निरसन २२६ देशबन्धुवि के मत का पूर्वपक्ष २२ वेश्मत का प्रतिक्षेप
२२८ मेदामेवपक्ष में जास्य का निवर्शन २२९ विजातीयस्तु में प्रत्येक दोष का निरसम २२२ यो उत्कर्ष की शानि की बात अयुक्त २३० अनेकान्तवाद में सकिर्य का आभावन २३० में संकीर्ण वस्तु का स्वीकार २३१ जद में स्मिता और उष्णता की खंड
व्याप्ति
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पृष्ठक
विषम
२३९ जात्मक मेव और एकस्वभाव को व्याप्ति २३१ तस्य किंचित् भेव अर्थ में पशु पण्डी २३३ मूळ वस्तु का निवृतिरूप परिणाम २३४ निवृति प्रनिवृत्ति उभयरूप वस्तु के पहन की उपपति
२३५ क्रमाक्रमोभयामक एक नाम की अनुभूति २३५ महियों के मत में ईहा को २६६२८
२३७ वर के नियानित्यत्व के बिना प्रत्यभिक्षा की अनुपपत्ति २६ पूर्वापर व्यक्ति का एकान्त ऐश्य मानने में प्रत्यभिका की अनुपपत्ति २३९ष्टि होने पर भी शुद्ध व्यक्ति का अभेव
२४० एकान्तवपक्ष में विशेषणविशेष्यभाव २४१ पूर्वपरवर्ती ग्राहक में भी भेवामेद असंगत २४२ एक अनुगत निश्य सामान्य के द्वारा प्रत्य भिज्ञा की उपपत्ति असंगल
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२४३ क्षणिकक्ष में सादृश्यज्ञान को असंगति :४४ 'यह वही हैं' ऐसी प्रश्यभिक्षा अभ्रान्स है २४४ योगिन से अणिकरण को सिद्धि दुष्कर २४५ सभी प्रमभिज्ञा भ्रमात्मक नहीं होती २४५ प्रत्यभिशा में प्रामाण्यसंशय का निराकरण २४६ जितने बाद उसने परसमय २४ और वन का मूल २४८ ल्याव से समभाव की सिद्धि २४ द्वावत का उपसंहार
२५० शुद्धि पत्रक
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