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________________ १जक विषम | पृष्ठांक विषय १८४ अनुगतरूपतालमा का निराकरण - कालीच पर जाने की सापति का निवारण १८५ अनेकान्तमान में साध्यसिदि निर्माण २००शक्षक मत को नोनीष को मान्यता के १८६ एकान्तवावी बारा उजाधित मी बोगों का निवारण का माशय निराकरका २०० जीयाविविषय में सास नय की मान्मता १८६ संसारो और असंसारी में पानेकान्स पी ०१ घट के एक देश में अवक्तव्यात शंकाका उपपत्ति मिवारण १७ दो रूपों के समाये में विरोध को शहा । २०२ भोर नौर के अमेव की आपत्ति का प्रत्युत्तर १७ मधसम्मतस्यवहार के बल से शंशा का २०३ध्य गुण पर्याय के विभाग की समीक्षा मिरप्सन २.५ सम्मतिप्रकरण में पर्याय भिन्न गुण का निरसन १८७ मुक्त दशा में असंसारी का व्यवहार गौण | २.६ मेवाभेव के बिना अन्योन्यग्याप्ति का असंभव नहीं है ५०६ अन्योन्य और ध्याप्तिका अर्थ ५८८ संसारी धर्मों का ही मुक्तनी में परावर्तन १.७ भेदाभव के बिना सम्योमध्यारिससम्भावना १८९ शुज धी के भी कचिद् भेव को उपपत्ति का निरसन १५ मुक्तिकाल में भी संसारी के अमेव का | २०८ पृथात्व से अतिरिक्त मेव असिख है उपपावन २८ अपृयवस्व ही प्रत्यभिज्ञानाविनिमामक ताबा११ लोकानुनय से समित् भेदाभेव का उपपादन १९१ बाल और युवान में भी एकान्तमेव नहीं '२.५ एक वस्तु में भेव-अमेव के विरोध का निरसन १६२ बाल और युवान अवस्था में एकास अभेव १० भेदामेब के बिना प्रमेय-अभिषेप का तावाभी मही म्य पुषंट १९३ वाट्यावि भवस्था शरीर की नहीं, प्रात्मा | २१० मिन्न भिन्न संसर्ग की कल्पना अयुरू | २१२ सभामविपितवाल पदों के प्रयोग से मेवा१९३ चार्वाकवाव को आपत्ति का विधारण - मेव की सिद्धि १९. बाल्याधि प्रमेव की प्रत्यभिज्ञा सजातीमा २१३ साध्य-अप्रसिद्धि बोष का निवारण भवप्राहक होने की शंका का उत्तर : २१३ उभयत्यय ते साध्य करने पर कोई दोष १९५ 'युवा न बालः' प्रतीशि में सेव के पहले नहीं २१३ मन्तिा को भापति का निवारण धम्म के भान की पांका २१३ व्यतिरेकव्याप्ति में व्याप्यासिदि वोषका १९५ के बाप पंधर्प का भान मानने पर आपत्ति मिवारण उत्तर २१३ध्य पर्यायामना मेवात का उपपादन १९६ भाषसम्याव और व्यसम्यकप का विभाग । २१४ इन्द्रसमास में भेरमान के निरसन का प्रयास १६५ सम्यग्दर्शनमूलक निरा के अमाप को |१२ दसमास में भेव का भान म मानने में काका उत्सर आपत्ति १९. गौतार्य के ज्ञान से प्रगीतार्थ को मुक्तिलाभ- | २१५ मिलाव मेवयाप्य न होने की शंका का निरसन १९८ गति स्र्थाित-बहन-पचन जोब-मजोयादि में | २१५ एकान्तबादी के 'रुप एसवान वो इस प्रयोग अनेकाराष्टि को आपत्ति
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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