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शास्त्रमा सलो . २२.
[ अणुपरिमाण का अपलाप भी अशक्य है। पवि यह कहा जाय कि-"कोई पापक न होने से अणुत्रा का प्रपलाप हो सकता है किन्तु महत्व का अपलाप नहीं हो सकता, क्योंकि महत्व का अपलाप करने पर महरष के आश्रयरूप में अभिमत द्रव्य का चाक्षुष प्रत्यक्ष पुषंट हो जायगा क्योंकि महत् और उद्भूतरूपवान् द्रव्य का ही नियमतः चाक्षुषप्रत्यक्ष होता है।"-तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि प्रध्यवानुष के प्रति महत्व और उन्नत रूप को कारण म मानकर लायक से केवल उद्भूताणत्व की हो कारण मान लेने से उक्त प्रापत्ति निमृत की जा सकती है, क्योंकि जिम यों का चासष प्रत्यक्ष होता है-उवभूताणुस्व की कल्पना उन्हीं वस्यों में की जायगी । दूसरी बात यह है कि जो लोग उस्कर्ष-अपकर्ष को पारमाणमत मानते हैं ने आपेक्षिकमहत्व से अतिरिक्त उत्कर्ष का और अपेक्षिकम्रणव से अतिरिक्त अपकर्ष का नियम महीं कर सकते । क्योंकि सोक्यं के भय से खातिरूप में उन का विधान अशक्य है और अन्यरूप में उमको अनुगतरूपता अशक्य है।
क्रिश्न-"एवमणुत्ववत् परिमाणमाप्रमेव काल्पनिकम् , इति 'महदादिपरिमाणं रूपादिभ्योऽर्थान्तरम् , तन्प्रत्ययविलक्षणबुद्विग्रामस्वाद , सुखादिवत्' इत्यत्र यदि रूपादिविषयेन्द्रियसुद्धिविलक्षणयुद्विग्राह्यत्वादिनि हेत्यर्थः तदा हेतुस्सिदः, तथाव्यवस्थितरूपादिव्यतिरेण १५८ दाविपरिमाणस्य : ३५६ गा पद । अ 'असु-महन्' इत्याकारतन्प्रत्ययधिलषणकल्पनादिग्रावस्यादिति हेतुः, तदा विपर्यये षाधक प्रमाणाऽभावादनकान्तिकः । न यस्याः किंभिदपि परमार्थतो प्रायमस्ति । फल्पना त्वेकदिल्मुखादिप्रकृत्तय विशिष्टरूपादिप्पलब्धए तद्विलवणरूपादिभेदप्रकाशनायाऽसद्विषयिणगेच प्रवर्तत इति । युक्तं चैलत् , परपरिकल्पितरादभावेऽपि प्रासाद-मालादिषु महादादिप्रत्ययप्रादुर्भतेरनुभवाच । न चायमांपचारिकः, अस्वलद्सूतित्वात् । तदुक्तम् - [प्र. रा. २-१५७]
"मालादी च महत्वादिरिष्टो यश्चौपचारिकः । मुरगाऽविशिष्टविज्ञानग्राहारवाद नौपचारिकः ।। १ ।।"
-वृति बदन्तस्तावागताः कथं प्रतिक्षेप्याः १ । एकस्य स्वलक्षणम्य भिन्नपूरुपीयनानाकम्पनाहेतुसमनन्तर सहकारिन्वे स्खभामभेदप्रसङ्गान् वयमेर हि सान् प्रत्याचक्षाणा शोभेमहि, नतु यूयमेकान्तेनानेककार्य जननकस्वभावमेकं बाइमात्रेणाभ्युपयन्त इति दिक् ।
इसके अतिरिक्त अणस्थ को काल्पनिक मानमे पर बौर की मोर से पह भी कहा जा सकता है कि परिमाणमात्र हो काल्पनिक है । इस पक्ष में आप (नैयायिक) की ओर से इष्टापत्ति नहीं की जा सकती क्योंकि 'सर्व द्रव्यं परिमाणवन्' इस सिद्धान्त को हानि होगी।।
[नैयायिक की ओर से परिमाणसाधक अनुमान ] परि बौद्ध के सामने यह कहा जाय कि-'परिमागमान को काल्पनिक नहीं माना जा सकता क्योंकि अनुमानप्रमाण से परिमाण सिंक है-अनुमान का प्रयोग इसप्रकार होता है 'महाविपरिमाण