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टीका एवं हिन्धी विवेधा ]
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भावस्वमिति, ध्पयो-त्पादादिशक्तिभेदाव , एकसमादेव घटनाशादनेकेषां घटार्थिनां युगपच्छोकोस्पादेऽप्यनेकोपादानसंबन्धनिमित्तानास्वभावभेदाद । तदिदमुक्तम्-"न पैकानेकस्वभावेऽप्यथमिति, तथादर्शनोपपत्तेः" इति ॥ १६ ॥
[पासना अहेतुक होने पर दोषपरम्परा ] बासन। यदि मिहेंतुक होते हुये उत्पत्तिशीत होगी तो उसके सवाभाव की यानी तवा उत्पत्ति की आपत्ति होगी और परि अनुस्पतिशील होगी तो सर्वदा उसके इतर यानी उत्पत्ति से इतर प्रति अनुत्पत्ति को आपत्ति होगी। उसके अतिरिक्त दूसरा ओष यह है कि एक स्वभाव वस्तु से यवि विविषाकार बासना की उत्पत्ति मामो जायगी तो मिमम से अतिप्रसङ्ग, विपर्यय और अनेकस्वभावरण को आपत्ति होगी। जैसे देखिये-पति एकरूप वस्तु से घिधिमाकार कासना को उत्पत्ति होगी तो किमी एक ही वस्तु से सम्पूर्ण व्यवहार के नियाम बासना की उत्पत्ति होने से प्रस्तुमात्र में अगत् को परिसमाप्ति रूप मसित होगा । ' हो पा विभिन्न आईतवारा विभिन्नाकार बासमा की उत्पादक होती है यह मानकर भी इस दोष का परिहार नही किया जा सकता क्योंकि मौसमत में जाति वास्तविक है। कल्पित जाति मेव कायमेव का नियामक नहीं हो सकता, क्योंकि कस्पित आतिमेव से यरि कार्यभेव को उत्पत्ति होगी तो कल्पित जातिऐप से कार्याऽभेद की मी प्रसक्ति हो सकती है। यदि किसी प्रकार जातिमेव को कल्पना करके कार्यो की उपपत्ति को भी जाय तो रूपाधि से रसादि पासमा की आपत्ति का परिहार सम्मन होने पर भी मोलावि से पोताविवासना की उत्पति का प्रसनतो अनिवार्य ही होगा क्योंकि मील-पीसारितभी के कपमासीय होने से उन में जातिमेव मही है।
यपि यह कहा जाय कि मील पीतावि में सजासोयता होने पर भी नीलादि से पीतादि मासना की उत्पत्ति इसलिये नहीं होती कि नीलादि में पीताविबासमा का प्रजनका स्वभाव है।'तो यह ठीक नहीं है क्योंकि मह समाधान केवल पचममान है-उसमें कुछ पुक्ति नहीं है। पयोंकि जैसे यह कहा जय कि-नोल बस्तु मील्वासना काही जनक होती है, पीता विवासना का अनक मही होती, क्योंकि पोताविवासमा का अजनकत्व उसका स्वभाव है। उसी प्रकार यह भी कहा जा कहा जा सकता है कि यर भी शोकषासमा का ही जनक है प्रमोवघाप्तमा का नहरें। फलतः घटार्थों को भी घर से प्रमोवनी उपत्ति न हो सकेगी।
यदि इसके उमर में बौर की पौर से यह कहा जाय कि-"एक ही घर में शोक-प्रमोवाति विषयक प्रकवासनापान का स्वभाव है अत: उक्त दोष नहीं हो सकता'-तो ऐसा कहने पर विपर्यप की आपत्ति होगी, सत घट को जित समाव से शोक का जनक माना आपगा पनि उसी समाव से मह प्रमोर का भी जमक होगा तो शोक स्थल में प्रमोद को मापत्ति होगी। पदि भिन्न भिन्न स्वमाष से शोक-प्रमोद का जनक माना जायगा तो एक वस्तु में समावभेव की सापति होगी। जो गौर को अभिमत नहीं है।
इस सन्दर्भ में यह कहना कि-'घटरूष सहकारी कारण के अभिन्न होने पर भी ससद मनस्कार-समतातर मामक्षणल्प उपायाम कारण के भेव से पोक प्रमोवावि कार्यमेवोपास हो सकती ह'-मह वोफ नहीं है, क्योंकि एक ही घट विभिन्नोपावाम कारणों का सहकारी नहीं हो सकता । भाशय यह है कि यदि तसत् उपायामकारण शोक-प्रमोवादि विभिन्न कार्यों के प्रति स्वयं समर्थ हो