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स्यारीका एवं हिन्दी विवेचन]
वस्तुष्यबहार की प्रवृत्ति का परिहार करने के लिए उत्त होकर, वस्तु के निरूपण में तत्तनिकापा का प्रयोग इसप्रकार करमा चाहिये जिससे प्रयोक्ता का प्रभिप्राय वस्तु के स्वरूपनिरुपण में बाधका न हो।"-अभिप्राय यह है कि यदि मायाव का प्रयोग किसी ऐसे संदर्भ में आया है जिसमें अश्व का आशुगमनमारूष अर्थसंगत मझी हाता, ऐसे संदर्भ में अश्वशम् की ज्याच्या नाम, स्थापना, पा ब्रम्प निकोप की ष्टि से अश्वासन के निर्धारण से करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से ही आचमात्र के प्रयोफ्ता का मभिप्राय उस संघभविशेष में अश्वशक्षा के प्रयोग के प्रतिपाल महोगा ॥१७॥
१८वा मारिका में पूर्वपक्षी के इस बयान में दोष प्रदर्शन किया गया है कि बासु में उत्पादावि विरूपता का सापक मोर-प्रमोव-मामरूप का उपवासमावियोग से अन्यचासिद्ध हो जाता है ----
याचो पादादित्रयात्मकत्वे शोक-प्रमोद-माध्यस्थ्योदयसाधकस्यान्यथासिद्धिर्वासनाविमोपेणेति पूर्वपक्षिणोक्तं तद् दयितुमाहमूलम्घासनाहेनुकं यच्च शोकावि परिकीर्तितम् ।
तवयुक्तं यतचित्रा सा न जात्वनिषन्धना ॥ १ ॥ यच्च की वासना निकीतता नहु निमस्तानमा तयुक्तम्, पतरिचना-शोकादिजनकन्वेन नानाप्रकारा सायासनासमनन्तरमानक्षणलक्षणा न जातुन कदाचित् अनिपन्धना=नितुझा ।। १८॥
[शोकादि बासनामूलक होने का कथन अयुक्त ] स संदर्भ में बौद्ध को प्रोर से जो यह कहा गया है कि-शोकावि पासमानुक है. भिलवस्तुहेतुक नहीं है । अर्थात यह कहना कि-'घाममा सुष्ण का नापा घटार्थी के शोकका, सुकुष्टात्मना उत्पाद मुकुटाओं के प्रमोच का, और आकार य में निरपेक्ष-यानी उदासीन सामान्य मुवर्थोिं के मायथ्य का, प्रयोजक होता है-यह ठीक नहीं है। क्योंकि घटात्मना सुवर्ण के नाश को घटार्क को पल होता है उस का कारण सुवर्ग का घात्मगा नाश नहीं है किन्तु 'बराकारशून्य सुवर्ण इष्टसंपादक नहीं, इसप्रकार की जो घटापों को बामना होती है वह शोक को जनक है । प्रायथा यदि मुवर्ण का घदात्मना नावा स्वरूपतः शोक जनक है। सो उस का रूप घतार्थी और घटनिरपेक्ष दोनों के प्रति समान होने में दोनों को शोकोत्पत्ति होनी चाहिये । यही बात प्रमोद और माध्यस्थ्य के विषय में भी जातव्य है।"-कित विचार करने पर बौद्ध का यह कथन मुक्तिसंगतमही प्रतीत होता। क्योंकि जिस धासमा को शोकावि का कारण बताया गया है वह विभिनाकार समनस्तर समक्षणरूप है अतः वह कभी मितुक असबा समानहेतुक नहीं हो सकती।
१६ श्री कारिका में पूर्णकारिका में उक्त अर्थ का उपपाषन किया गया है - अन हेतुमाहमूलम्-सदाभाषेसरापत्तिरेकभावाच्च पस्तुनः ।
तावेऽतिमसनादि नियमासंप्रसज्यते ॥ ११॥