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________________ स्था टरेका एवं हिन्दी विवेचन ] इति मजगानिकारेऽभिधाय, उपोद्घाले भावं चिय सद्दणया सेसा इति सरणितखे।" [वि. आ. भा. २८४७ ] इति वदता भाष्यकृतां कोऽभिप्रायः ? इति चेत् । अयमभिप्रायः -पूत शुद्धचरणोपयोगरूपभाषमालाधिकार संबन्धाद नंगमादिना जलाहमादिरूपभावघटाम्युपगमेऽपि बटोपयोगरूपभावघटानभ्यूपापान योक्तिः, पथशानियेणाच्च न प्रन्ययस्याभिधानतुल्यता । अग्रे तु पत्रस्याधिकारार् विशेपोकिता, इनि 'व्याकिस्त चामादित्रयम्' इत्यत्र नायधारणम् , 'पर्यवनयस्त भावः' इत्यत्र शावधारणम् , इत्यनेन सानोण नामादित्रयविषयस्वमेव द्रव्याथिकल्यवभिप्रेत्य भयान्तरेण या पूर्व तयोक्तिः । अन एवोक्तं तत्त्वार्थवसी"अत्र चाया नामादयन्त्रयो विकल्पा द्रव्यार्थिकस्य, तथा तथा सार्थत्वात् , पाश्चात्य पर्यायनयस्व, तथापरिणतिविज्ञानाभ्याम्" इति । अत पय घ नामं रावणा दरिए ति एस दर्गडियस णिक्यो । भायो अ पज्जाष्टि(रस)परूक्षणा एस परमस्थो ।" इति सम्मति(-६)गाायाम् । अथवा, 'वस्तुनिवन्धनाध्यक्सायनिमित्सव्यवहारमूलकारयातामनयाँ प्रतिपाद्याभुनापारोपिता-नध्यारोपिरानाम-स्थापना-द्रव्य-भावनिवन्धनब्यत्रहार निवन्धनतागनयोरेर प्रतिपादयन्नाहानार्थ:-इति द्वितीयावतरणिका । इति दृढतरं मु(भिविमाननीयम् । इत्येवं मुनिक्षेपो मौवशेषावता सुधीः । तथा तथा आयुष्शीत यथा संभा न घाघते || इति ॥१७॥ [ भाग्यकार के द्विविध कथन का अभिप्राय !] उक्त रीति से नगमाधि में नामाघि निक्षेप और भापनिक्षेप के अभ्युपगम में भाष्यकार कर समर्थन बताने पर यह प्रश्न अ सकता है कि भाष्यकार में मलप्रकरण में मह कहा है कि नामानि तीन निक्षेप नष्पारिक के धौर मात्र निक्षेप पर्यायाधिक चिरय है' सी और चाही ने उपोवनात प्रकरण में यह कहा है कि 'पर्यायाचिफनप यानि मात्र कोही विषम करता है और द्रव्यायिक नय सभी फीक्षेपों पो विषय करते हैं।' न वोनों कथनों में स्वाटरूप से विरोध प्रतीत होता है। अतः भाथ्यकार के इस विविध प.धन का क्या अभिप्राय है ? पप प्रपन के उत्तर में व्याख्याकार ने उक्त कथन का यह अभिप्राय बताया है कि प्रथम पाथन शुद्धचारित्र में मनोयोगरूपभाषमल्ल के प्रकरण से सम्बन है। प्रतः उसमें बताना है कि नंगमाधिनय को मंगलरप में कौन निक्षेप अभिमस है। वस्तुस्थिति यह है कि नेगभनय की दृष्टि में माम-थापना और द्रव्यरुप मङ्गल अभिमत है पोंकि भगवयाम अगवस्मृति तथा जलाहरणादि में सात घटादि उसे मङ्गलारमना मम्युपगत है १, नामाविधिक दास्तफस्प भायव मास्तिकस्य । २. भारपेच धानमनयाः शेषा इच्छन्ति सर्वनिशेषान् । ३. नाम स्थापना अयं सोप दयास्ति त्रस्य निक्षेपः । भावश्च पवारिता (स्य)प्रपणेष परमाधः ॥१॥
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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