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________________ स्मा टीका एवं हिन्वी विधान १०६ तो शग्वादिनयों के विषय में भी कारणत्वाविरूप नव्यसायम को लेकर गुरुवपक्ष का औपचारिक प्रयोग सम्भव होने से उम नयों में भी डायनिक्षेप के अम्युपगम का प्रतिप्रसङ्ग होगा। दूसरी बात यह है कि उक्तसूत्र में अनुपयुक्त पनेक प्राधायक में मध्यपृषय का निबंध किया गया है, अतः उममें पपृथक तपस्यता का विधान अनिवार्य है क्योंकि किसी सामान्य वस्तु के एक विशेष के मिषेष का उसके इतर विषेष के विधान में पर्यवसान होता है। स्यादेन-द्रव्याधिन नामादिचतुष्टयाभ्युपगमे द्रव्यार्थिकत्वन्याहतिः । 'द्रव्यं प्रधानतपा, पर्याय च गीणतयाऽभ्युपगच्छन् द्रव्यार्थिकोऽपि भावनिःक्षेपसह इति चेत् । इन्स ! ताई त्वदुक्तरीत्या शब्दनया अपि द्रव्यमापसहा इति कथमुक्तव्यस्था ? एनेन 'थ्यार्थिकपर्यायार्थिफयोद्वयोस्तुत्यवदेवोभयाभ्युपगमः, परमावस्य सर्वथाऽभेदन, अन्त्यस्य सु सर्वथा भदन, दांत दयायिकस्यापि पर्यायसहस्त्रम्' इत्पस्तम्, एवं सति पर्यायार्थिफस्प शब्दादरवि द्रव्यसहत्त्वापरः, अत्यन्तभेदाऽभेदग्राहिणोद्धयोः समादितयोरपि मिथ्याष्टियान , अभेदे पर्यायद्वया(? द्रव्या)सहोक्तिप्रसङ्गान , मेदे पर्यायार्थिकेनापि द्रव्यग्रहे द्रव्यार्थिकस्याऽन्तगइत्वासपत्त्यैतन्मतस्य भाष्यकृतय निरस्तत्याम्चेनि । __ मैषम् , अविशुद्धानां नगमादिभेदाना नामाघभ्युपगमप्रश्णत्वेऽपि विशुद्धनगमभेदस्य द्रच्यविशेषणतया पर्यायाधुपगमाइ न तत्र भावनिक्षेपानुपपत्तिः, अत एवागमः-*जीवो गुणपडितनो यस दबढि अस्स सामा" इति । अत्र हि समतापरिणामविशिष्टे जीवे सामायिकत्वं विधीयत इति । न चैवं पर्यायार्थिकत्यापत्तिः, इतराऽविशेषणत्वरूपप्राश्चान्येन पर्यायानभ्युपगम त् । शब्दादीनां पर्यायानयाना तु नैंगमवद विशुद्धयमा न नामावभ्युपगन्नस्मम् । अवगत तद्विपयत्वं तु नोकताविभागव्याधाताय, स्वातन्त्र्येण पर्यायविषयत्वं त्यच्याहतमिति पर्यालोचथामः । [ भावनिक्षेप के स्वीकार में द्रव्याधिकत्त्र के भंग का आक्षेप ] यदि यह प्राक्षेप किया जाप कि.."क्ष्याथिक में मामावि चारों निक्षेपों का अम्मुपगम करने पर उन नयों के व्याथिफर को हानि होगी, क्योंकि द्रव्यमानविषय नम को हो ग्याषिक नस कहाजाता है। यदि को-'प्रष्य को प्रधानरूप से पोर पर्याय को गौणरूप से उपाधिक का विषय माने तो उसमें भी भावनिक्षेप के भ्युपग्रम का समर्थन शक्य है तो यह ठीक नहीं, क्योंकि उक्त रीति से पर्याय को प्रधानरूप से तथा प्रय्य को गौणरूप से अभ्युपगम करने को रोसि से शब्दमयों में भी प्रत्यमि क्षेप का मायुपगम प्रसक्त होगा । तब इस स्थिति में नामाथि निक्षेप चतुष्टय म्याधिक के विषय है और एकमात्र मावनिःक्षेप हो पायाधिक का विषय होता है यह भोपवस्या पी गई है वह कैसे उपपन्न होगी? इस प्रसंग में किसी का यह कहना कि-रुयाधिक और पर्यापार्षिक योगों में समामकी जीवः गुणप्रतिपमानयस्य वार्षिकस्य सामायिकम् ।
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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