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________________ [शास्त्रदाता सबलो १३ इस मत में संसार का ऐसा कोई प्रत्यय नहीं हो सकता, जो श्रोता से गृहीत न हो, अतः शम्न और बोध के अभेद पक्ष में सभी मनुष्य में परचितसा को आपत्ति होगी। प्रप्त: भगव के शाम्यमयष में शब्दानुवित प्रत्यय साक्षी नहीं हो सकता,पयोंकि उक्त रीति से प्रत्यय की शब्दानुषिद्धता प्रसिद्ध है। किंच, शब्दमयत्वं जगतः शब्द परिणामरूपत्तम , नीलादिगरिणामच शब्दस्य स्वाभाविकशब्दस्वरूपपरित्याग, सदपरित्याग वा ।। आधे, अनादि निधनत्वविरोधः । द्वितीय नीलादिसंवेदनफाले पधिरस्यापि शब्दसंवेदनापत्तिः । 'स्थलशब्दपरिणामपरित्यागेऽपि सन्मशब्दरूपाऽपरित्यागात् प्रथमरिकल्पे न दोष' इति चेत् । न, सूक्ष्मस्थ सतस्तादृशदलोषमयाभावे ताशस्थूलरूपाऽसंभवाव , समस्य शब्दस्य तादृशार्थपरिणामः, मूक्ष्मस्याऽर्थस्य बा तादशशब्दपरिणाम इति विनिगन्तुमशक्यत्वाच । 'घटादिरों घटादिशदोपरागेणानुभूयत इत्यर्थ एव शब्दपरिणाम' इति चेत् ? न, 'अब घटाइत्यत्र हि 'अयं घटपदयाच्या' इत्येवानुमका, न तु 'अयं पटपदात्मा' इति । [शब्द के नीलादि परिणाम के ऊपर विकल्पद्रय ] दूसरी बात यह है कि जगत की शवषयता शनवपरिणामरूपता के अधीन है अतः नीलाधारमक परिणाम के सम्मान में यह प्रपन होता है कि (१) शव का नोलाविस्वरुपपरिणाम पान के स्वाभाविकरूप का परित्याग होने पर होता है प्रथया (२) परित्याग के अभाव में होता है? प्रथम पक्ष में शाम के अनादि निधनस्व को प्रनुपपत्ति होगी और दूसरे पक्ष में मीलादि के संवेवन काल में वायर को भी प्रासंवेवन की आपत्ति होगी क्योंकि इस पक्ष में नीलादि यह कानादिरूप होता है। यदि यह कहा जाय कि- "शब का नीलादि परिणाम प्राद के स्थलपरिणाम का परित्याग होने पर होता है किन्तु शब्ब का समाप बना रहता है, अत: प्रथम विकल्प में अनादिनिधनत्व को अनुपपत्तिरूप दोष नहीं हो सकता, क्योंकि स्यूलरूप में शब्द को निति होने पर भी मुश्मरूप में शब्द का प्रस्तित्य ना रहता है"-तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि मृधमशन में सम्मपादास्तरसप अवयों का संयोग हुये विना पान का कोई स्यूलरूप नहीं हो सकता । सम में मधमशब्दातर का संयोग सजातीय-विजातीय स्वगत मे शून्य मावा हया में सभ कहा है। दूसरी बात यह है कि समसद का नीलादिरूप प्रर्य में परिणाम होता है. अथवा सूबम का नीलाधारमक स्थलब्ध में परिणाम होता है, इस में कोई विनिगमना नहीं है। पत एष जगत का तस्व सूक्ष्मशल्य है अथवा मूवम अर्थ है यह निर्णय पुर्घट होने से पावमान को अगस का तत्य घोषित करना पाटिको के लिये युक्तिसङ्गात नहीं है । यदि यह कहा जाप कि- 'घटादि अर्थ घटादिशबों से सम्बदरूप में अति घटादिशब्दतावाइण्यापनप में अनुमूस होता है इसलिये अर्थ शब्द का परिणाम है।'-तो पह ठीक नहीं है क्योंकि, 'अमं घटः' इस ध में 'अयं घटपरवाच्यः' यही अनुभव होता है। कि 'अयं घर परारमा यह अनुभव ।
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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