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[ शास्त्रवार्ता स्त० ५ श्लो० २१-२२
क्योंकि वह क्रिया है । आशय यह है कि यह नियम नहीं है कि जो क्रिया हो वह सकर्मक अवश्य हो । अतः प्रासनादि क्रियाओं के समान ज्ञान क्रिया को भी प्रकर्मक माना जा सकता है । इस पर यह शंका कि यदि वह आसनादि क्रिया के समान अकर्मक है तो जैसे कर्म के विना आसनादि क्रियापदों का प्रयोग होता है वैसे उसका भी प्रयोग क्यों नहीं होता'-इसका उत्तर यह है कि यतः ज्ञानक्रिया के बोषक पदों का कर्म बोधक पद के विना अनादि काल से ही प्रयोग नहीं होता आया है इसीलिये उसका अकर्मक क्रिया जैसा प्रयोग नहीं होता है, बल्कि शब्द विकल्पयोनि विकल्पजन्य होते हैं इसलिये वासना के बल से कम बोधक पद के साथ हो 'जानाति' इत्यादि ज्ञानार्थक क्रियापदों का प्रयोग होता है ॥ २० ॥
२१ वी कारिका में बौद्ध के उक्त अभिप्राय का उत्तर दिया गया हैअत्रोत्तरम्मूलं- उच्यते सांप्रतमदः स्वयमेव विचिन्त्यताम् ।
प्रमाणाभावतस्तन्न यधेतदुपपद्यते ॥२१॥ उच्यते सांप्रतम् अदः-एतव, अभिनिवेशत्यागेन स्वयमेव विचिन्त्यताम् आलोच्यताम् , प्रमाणाभावतः तत्र-अविशिष्टप्रकाशमात्रे विज्ञाने, यद्यतत्-एवं तत्वव्यवस्थापनमुपपद्यते ॥२१॥
[ ज्ञान अकर्मक होने की बात में प्रमाणाभाव-उत्तरपक्ष ] ग्रन्थकार का कहना है कि विज्ञानवादी औद्ध को आग्रह त्याग कर प्रशान्तचित्त से यह सोचना चाहिये कि प्रमाण के अमाव में ग्राह्य-ग्राहक आकार से मुक्त केवल प्रकाशात्मक विज्ञान को तात्विकता का प्रवधारण क्या उपपन्न हो सकता है ? ॥२१॥
२२ वीं कारिका में विज्ञानवादी को सम्मत विज्ञानस्वरूप की अनुपपद्यमानता स्पष्ट की गई है ---
कथं नोपपद्यते ? इत्याह___ मुलं--एवं न यत्तदात्मानमपि हन्त ! प्रकाशयेत् ।
अतस्तदित्थं नो युक्तमन्यथा न व्यवस्थितिः ॥२२॥ एवं गगनतलवालोककल्पनायां प्रकाशैकमात्रस्वभावत्वाद् निविषयं तदात्मानमपि-तत्स्वरूपमपि न प्रकाशयेत् । अत इत्थं तत्काशमात्रं न युक्तम् , अबुध्यमानस्य योधरूपत्वायोगात, अन्यथा प्रकाशकमात्रत्वे तस्य न व्यवस्थितिस्कर्मकस्वरूपस्य ॥ २२ ॥
विज्ञान यदि आकाशतल में विद्यमान आलोक के समान ग्राह्यत्व और ग्राहकत्व उभय से मुक्त होगा तो केवल प्रकाशात्मक स्वभाव होने से सर्वथा निविषयक होगा फलत: वह अपने स्व. रूपमात्र का भी प्रकाशक न हो सकेगा। अतः उसे प्रकाश मात्र बताना प्रयुक्त है क्योंषि अब वह अबोद्धा-किसी का बोधक नहीं है तो वह बोधरूप नहीं हो सकता। यदि वह एक मात्र प्रकाशस्वरूप होगा तो उस के अकर्मकस्वरूप-कमहोनस्वरूप की उपपत्ति न हो सकेगी।॥ २२ ॥
२३ वी कारिका में प्रकाश के अफर्मकस्वरूप की अनुपपत्ति का समर्थन किया गया है