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[ शास्त्रवार्त्ता स्त० ५ इलो० १३
[ प्रवृत्ति और प्राप्ति से बाह्यार्थी का अस्तित्व ]
दूसरे युक्ति यह है- घटादि अर्थों में प्रवृत्ति । यदि ज्ञान से अतिरिक्त घटादि का बहिदेश में after न हो तो घटादिज्ञान के बाद घटादि के ग्रहण के लिये बाह्यदेश में मनुष्य की प्रवृत्ति नहीं हो सकती।
तीसरी युक्ति है घटज्ञान के पश्चाद- 'घट को प्राप्त करने के लिये प्रवृत्त मनुष्य को घट की प्राप्ति । यदि घट यह ज्ञान से भिन्न न हो तो जैसे ज्ञान की बाह्यदेश में प्राप्ति नहीं होतो वैसे घट की भी देश में प्राप्ति नहीं होती । इस तीसरी युक्ति से ज्ञान से पृथक् घटादि के अस्तित्व की सिद्धि सम्भव होने से ही दूसरी युक्ति के सम्बन्ध में विज्ञानवादी का यह कथन कि - " बाह्यदेश में घटद के ग्रहण को प्रवृत्ति के अनुरोध से ज्ञान से पृथक् घटादि की सत्ता नहीं सिद्ध हो सकती क्योंकि घट के प्रभाव में भी घटाकारज्ञान से घट ग्रहण की प्रवृत्ति स्वभाविक रोति से उसी प्रकार हो सकती है जैसे शुक्ति रजतस्थल में ज्ञान से भिन्न रजत के न होने पर भी रजतज्ञान से ही रजतग्रहण लिये बहिर्देश में रजतार्थी की प्रवृत्ति होती है ।" वह निरस्त हो जाता है, क्योंकि घटज्ञानोत्तर होने वाली किसी प्रवृत्ति में प्राप्ति का संवाद और किसी प्रवृत्ति में प्राप्ति का विसंवाद होता है । श्रतः इसकी उपपत्ति के लिए घटग्रहणार्थं होने वालो प्रवृत्ति के कारणभूत ज्ञानों में प्राप्य अप्राप्य विषयों के भेद से भेद मानना आवश्यक है ।
[ घट की प्राप्ति ज्ञानात्मक नहीं है ]
तृतीय युक्ति के विषय में विज्ञानवादी की ओर से यदि यह कहा जाय कि "घटग्रहण के लिये प्रवृत्त मनुष्य को जो घट की प्राप्ति होती है वह भी घट के उपलम्भरूप ही है । उस उपलम्भ में घटाकर सत्यज्ञान कारण होता है। जिस घटाकार ज्ञान के बाद घटग्रहण के लिये प्रवृत्त मनुष्य को घटोपलम्भरूप घटप्राप्ति नहीं होती वह घटाकारज्ञान असत्य होता है" तो यह ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर सत्यवज्ञान के पश्चात् घट का विनाश हो जाने पर भी घट प्राप्ति की आपत्ति होगी क्योंकि घट प्राप्ति जब घटोपलम्भरूप है और उपलम्भ ज्ञानात्मक होने से अर्ध सापेक्ष नहीं है तो घट का विनाश उस प्राप्ति के होने में बाधक नहीं हो सकता । जैन मत में यह आपत्ति नहीं हो सकती क्योंकि घट की प्राप्ति घटसंनिधान साध्य है । घटभङ्ग हो जाने पर घट संनिधान न रहने से घट प्राप्ति को आपत्ति नहीं हो सकती है। यहां विज्ञानवादी इस संकट से यह कह कर मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते कि- "घटभङ्ग होने पर घटाभावज्ञान होने से घट की अप्राप्ति होती है"क्योंकि घटाभाव का ज्ञान न हो तो भी घटभङ्गस्थल में घटप्राप्ति नहीं होती । इसलिये घट की अप्राप्ति को घटाभावज्ञानमूलक नहीं कहा जा सकता ।
[विज्ञानवाद में घट प्राप्ति की अनुपपत्ति |
विज्ञानवाद में दूसरा दोष यह है कि घटप्राप्ति का उत्पादन विज्ञानवादी के मत में कथमपि शक्य नहीं है । जैसे, घटाकार ज्ञानमात्र से घटप्राप्ति मानने पर भूतल में घटज्ञान से पर्वत में भी घट प्राप्ति की आपत्ति होगी। यह नहीं कहा जा सकता कि ततद्देश में तत्तदर्थं की प्राप्ति के प्रति तत्तदर्थ से विशिष्ट ततद्देशज्ञान कारण है, क्योंकि ज्ञान से भिन्न अर्थ का अस्तित्व न होने से घटादिविशिष्ट भूतलाद की अप्रसिद्धि होने के कारण घटादिविशिष्ट भूतलादि ज्ञान दुर्घट है। विज्ञानवादी की ओर से