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स्या क. टोका एवं हिन्दी विधेचन ]
की योग्यता कैसे न्यायसंगत हो सकती है ? लोक में तो उन्हों वस्तुओं में किसी कार्य की योग्यता मानो जाती है जिन में उस कार्य का प्रभाव कारणान्तर के अभाव से होता है। किन्तु जिन प्रत्ययों में सवा कार्याभाव होगा उनमें वह अभाव कारणान्तर के अभाव से प्रयुक्त नहीं हो सकता । अतः उन में योग्यता का अभ्युपगम लोकव्यवहार विरुद्ध है-जैसे अश्वमाष यानी कंकटुक अर्थात् ऐसा द्रष्य जो देखने में पूरा मुग जैसा होता है किन्तु मूलतः वह पाषाणखण्ड होने से कभी नहीं पकता इसीलिये लोक में यह पाकयोग्य मुग के रूप में नहीं व्यवहृत किया जाता ॥७॥
८वीं कारिका में नैयायिक सम्मत योग्यानुपलब्धि के स्वीकारने से भी बौद्ध की अभिमतसिद्धि नहीं हो सकती । इस तथ्य का प्रतिपादन किया गया है
अधिकृतशेषमाह
मूलम्-पराभिप्रायती ह्येतदेवं चेदुच्यते न यत् ।
- उपलब्धिलक्षणप्राप्तोऽर्थस्तस्योपलभ्यते ॥८॥
पराभिप्रायत्तः = बाह्यार्थवादिनैयायिकाद्यभिप्रायतो हि निश्चतम् एतदेवमुच्यते यदुत-'उपलब्धिलक्षणग्राप्तोऽयों नोपलभ्यते' इति । अत्र किं तदभिमतानुपलब्ध्यङ्गीकारेण तदभावः साध्यते, उत घटज्ञानात् प्रागपि घटसत्ताग्युपगमे तदा तदुपलम्भप्रसङ्गापादनं परं प्रति क्रियत इत्ति ? सो, तदभिरनेशायनमः नाङ्गीकारेणेश्वरादेरभ्युपगमप्रसङ्ग इति स्फुट एव दोषः । अन्त्ये स्वाह-न = नैतदेवम् , यद् = यस्मात् , तस्योपलब्धिलक्षणप्रतोऽर्थस्तेनोपलभ्यत एव, अन्यस्य तु न तदुपलम्भप्रसङ्गः तद्ग्राहकेन्द्रियसंनिकर्षाद्यभावादिति न किञ्चिदेतत् ॥८॥
[ पराभिप्राय से योग्यानुपलब्धि के अवलम्बन में आपत्ति ] पराभिप्राय से अर्थात् बाह्यार्थवादी नैयायिकादि के अभिप्रायानुसार योग्यानुपलब्धि का अवलम्बन करके भी बाझार्थ के प्रभाव का साधन नहीं किया जा सकता। कारण, पराभिमत योग्यानुपलब्धि को स्वीकार करने पर यह प्रश्न होगा कि उक्तानुपलब्धि से क्या अनुपलभ्यमान बाह्य पदार्थ के अभाव की सिद्धि अभिप्रेत है ? अथवा घटादिशान के पूर्व भी घटादि की सत्ता मानने पर उस समय भी घटादि के प्रत्यक्ष का आपादान अभिप्रेत है ? इन प्रश्नों का उचित समाधान बौद्ध को प्रोर से प्राप्त नहीं हो सकता, क्योंकि प्रथम पक्ष स्वीकार करने पर यह आपत्ति होगी कि यदि पराभिमत योग्यानुपलब्धि अभाव को ग्राहक होगी तो ईश्वर का अभाव नहीं सिद्ध हो सकेगा, क्योंकि परमतानुसार ईश्वर की अनुपलमित्र योग्यानुपलब्धि नहीं है, फलतः ईश्वर साधक अनुमान में कोई बाधक न होने से बौद्ध को अनिच्छा से भो ईश्वरानुमान का अभ्युपगम करना होगा, जिसके फलस्वरूप ईश्वर का अस्तित्व बौद्ध के गले में प्रा पड़ेगा। ऐसी हो स्थिति दूसरे पक्ष को भी है, क्योंकि घटज्ञान के पूर्व घटोपलम्भ के आपादन के विषय में बाह्मार्थवादी की अोर से यह कहा जा सकता है कि नियत समय में होने वाले घटज्ञान के पूर्व घटोपलम्भ के आपादन के विषय में, घट जिस व्यक्ति को उपलब्धिलक्षण प्राप्त होता है अर्थात् जिस व्यक्ति को उपलम्भ को सामग्री सन्निहित होती है उसे घट का उपलम्भ होता ही है और जिसे उक्त सामग्री सन्निहित नहीं होती
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