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[ शास्त्रवास० त० ५ श्लो० १ २
शश्वर तीर्थ के अधिपति, कल्पवृक्ष के समान मनुष्य के सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाले, कामक्रोधादि समस्त शत्रुनों के विजेता, भगवान पार्श्वनाथ यदि मेरे रक्षक हैं तो मुझे प्रतिधावियों के मिथ्या वचनों से उत्पन्न होने वाले दुर्नयों-कुमतों से मुझे कोई भय नहीं है ॥ ३ ॥
'विज्ञानमात्रमेव जगत्' इति योगाचा रमतं निराकुरुते -
प्रस्तुत ग्रन्थ के पश्चम स्तबक को प्रथम कारिका में, 'जगत् केवल विज्ञानात्मक है, विज्ञान से उसकी कोई अतिरिक्त सत्ता नहीं है' इस योगाचार मत के निराकरण का उपन्यास किया गया है । मूलम् - विज्ञानमात्रवादोऽपि न सम्यगुपपद्यते 1 मानं यत्तत्त्वतः किञ्चिदर्थाभावे न विद्यते ॥ १ ॥
विज्ञानमात्रवादोऽपि परपरिकल्पतः, सम्यग् विचार्यमाणः नोपपद्यते, यद्यस्मात् तवतः स्वतन्त्रनीत्यैव अर्थाभावे किञ्चिद् मानं प्रमाणं न विद्यते । न चार्थाभावनिश्चयमन्तरेण ज्ञानमात्रमेवेत्यवधारणं युज्यते, तदुक्तम्
"अयमेवेति यो ह्येष भावे भवति निर्णयः । नैष वस्त्वन्तराभावसंविश्य नुगमादृते ॥ १॥” इति ॥ १ ॥
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[ जगत् विज्ञानमात्ररूप है - योगाचार मत का प्रतिक्षेय ]
बौद्धों द्वारा कल्पित विज्ञानवाद भी अच्छे प्रकार विचार करने पर उपपन्न नहीं होता क्योंकि बाह्यार्थ के अभाव में कोई प्रमाण नहीं है, अतः अर्थाभाव का निश्चय किये विना स्वतन्त्र नीति से प्रमाण निरपेक्ष होकर अर्थात् विना किसी प्रमाण 'सम्पूर्ण विश्व केवल ज्ञानात्मक है' यह अवधारण युक्तिसङ्गत नहीं हो सकता। जैसा कि कहा गया है- 'भाव के सम्बन्ध में जो यह निर्णय लिया जाता है कि 'यह वस्तु एकमात्र अमुक ही हैं वह श्रन्य वस्तु के अभाव की सिद्धि के बिना उचित नहीं
॥१॥
न चाध्यक्षमाभावे मानमित्याह
दूसरी कारिका में अर्थाभाव में प्रत्यक्ष प्रमाण होने का निषेध बताया गया है
मूलम् - न प्रत्यक्षं यतोऽभावालम्बनं न तदिष्यते ।
नानुमानं तथाभूतसल्लिङ्गानुपलब्धितः ॥ २॥
न प्रत्यक्षमर्थाभावे मानम्, यतस्तदभावालम्बनं नेष्यते तस्य तुच्छत्वात् अध्यक्षस्य च स्वलक्षणालम्बनत्वात् । अत एव नानुमानं तत्र मानम्, तस्य तन्मूलत्वेन तदभावे तथाभूतसल्लिङ्गानुपलब्धितः - अर्थाभावप्रतिवद्धसाधुलिङ्गानुपलम्भात् ॥ २ ॥
अर्थाभाव में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिल सकता क्योंकि अभाव को प्रत्यक्ष का विषय नहीं माना जाता, यतः प्रभाव तुच्छ होता है, और अध्यक्ष-स्वलक्षण यानी सत्ययस्तुग्राही होता है । अध्यक्ष का सम्भव न होने के कारण हो अनुमान प्रमाण से भी अर्थाभाव की सिद्धि नहीं हो सकतो क्योंकि अनुमान