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[ शास्त्रवार्ता० स्त० ६ श्लो० २१
अतः वह नाश हो जाने पर कारणाधीन उत्पत्तिधर्मक नहीं कहा जायगा । अत एव कारण उसका उत्पादक नहीं होगा क्योंकि वह स्वाधीन उत्पत्तिधर्मक कार्य का ही जनक होता है।"
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तब यह व्याख्या ठोक रही है क्योंकि काश हेतु के सम्बन्ध में भी जी यह विकल्प किया गया था कि नाशहेतु नश्वरस्वभाव भाव का नाशक होता है इस विकल्प की भी यह व्याख्या की जा सकती है कि विनाश कारण से जिसका विनाश स्वरूपहानि लक्षणधर्म सम्पन्न होता है वही विनाश कारणाधीन विनाशधर्मक होने से नश्वरस्वभाव होता है और नाश का हेतु ऐसे नश्वरस्वभाव भाव का ही जनक होता है। इस व्याख्या के अनुसार नाशहेतु को नाश का उत्पादक मानना आयश्यक होगा क्योंकि यदि वह नाश का उत्पादक न होगा तो उसे स्वाधीन - विनाशोत्पत्तिवर्मकरूप नश्वरस्वभाव का नाशक कहना विरुद्धाभिधान होगा | अतः भावहेतुतया अभिमत पदार्थ को सत् स्वभाव जन्य का अननस्वभाव मानकर भाव का उत्पादक नहीं माना जा सकता ।
द्वितीये दोषमाह - जन्माऽयोगादिदोषाञ्च इतरस्यापि असत्स्वभावस्य जन्यस्यापि जनक इति पृथक्कृतयोगः, न युज्यते 'जननस्वभावः' इति शेषः । असतो जन्माऽयोगश्च, 'जन्मनः सत्तारूपत्वेन प्रकृत्यन्यथात्वानुपपत्तेः उत्पत्तौ बोत्पाद हेतुनाऽसतः सत्करणव नाशहेतुनापि सतोऽसत्करणसंभवात् असत्कार्य पक्षोक्त सकलदोपप्रसङ्गाच ।। २० ॥
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[ असत्स्वभावजन्य की जनकता का दूसरा विकल्प अयुक्त ]
इसीप्रकार भावहेतुतया प्रभिमत पदार्थ असत्स्वभावजन्य का जनकस्वभाव होता है यह द्वितीयविकल्प भी दोषग्रस्त है क्योंकि जन्य को असत्स्वभाव मानने पर इसका जन्य युक्तिसंगत नहीं हो सकता क्योंकि जन्म सत्तारूप है और असत की सत्ता मानने में प्रकृति स्वभाव के अन्यथात्व= परिवर्तन की प्रसक्ति होती है। क्योंकि जन्य असत्स्वभाव को छोड़ कर सत्स्वभाव को ग्रहण करता है और वस्तुस्थिति यह है कि स्वभाव का प्रत्यथात्थ असम्भव होता है । फिर भी यदि भावहेतुतया अभिमत पदार्थ से असत् की उत्पत्ति नहीं मानी जायगी तो जैसे उत्पत्ति हेतु से असत् का सत्करण होता है उसी प्रकार नाश हेतु से सत् का सत्करण भी हो सकता है । अतः नाशहेतु अनश्वरस्वभाव भाव का नाशक होता है यह द्वितीय विकल्प के कारण नाशहेतु के नाशोत्पादकता का निरास नहीं हो सकेगा। इसके अतिरिक्त, भावहेतु को असत्स्वभाव जन्य का जनक मानने में असत् कायवाद में बताये गये सम्पूर्ण दोषों को प्रसक्ति होगी ।। २० ॥
२१ वीं कारिका में उक्त चार विकल्प में से अन्तिम दो विकल्पों में दोष बताये गये हैं-अन्त्य विकल्पद्वये दोषमाह
मूलम् — न चोभयादिभावस्य विरोधासंभवादितः ।
स्वनिवृत्त्यादिभावादी कार्याऽभावादितोऽपरे ॥ २१ ॥
न चोभयादिस्वभावस्य उभयस्वभावस्य - अनुभयस्वभावस्य वा जन्यस्य जननस्वभावो जनकः । कुतः १ इत्याह-विरोधासंभवादितः - उभयस्वभावजन्यजनकत्वे वस्त्वविरोधेऽपि स्वमतविरोधात् अनुभयस्वभावजन्यजनकत्वे चासंभवात् ताशस्य जन्यस्य निःस्वभाव
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