________________
शास्त्रवा० स्त०६ श्लो०७
बालक को उत्पत्ति से बालक के मरण तक बालक की सत्ता मानी जाती है-इतनी लम्बी अवधि में बौद्ध के मत से एक बालक क्षण का होना सम्भव नहीं है । अत: बालक क्षण का सन्तान हो बालक की सत्ता है । यह सन्तान बालकादि को क्षीरादि खाद्यपदार्थों के सुलभ होने से सम्पन्न होता है । अतः स्पष्ट है कि जो बालकक्षण जिस दुग्धादि को ग्रहण करता है वह दुग्धादि और बालकक्षण समानकालिक है अतः उन दुग्धक्षण और बालक्षण में ही बालक्षण को उपकार्य और दुग्धक्षण को उपकारक नहीं माना जा सकता किन्तु बालक्ष और दुग्धक्षण के समान काल में होने से अग्रिमक्षण में बालक्षण को सत्ता सम्भव होती है । इस प्रकार दुग्धक्षण बालक्षण के सन्तान के सद्भाव में उपयोगी होने से सन्तान को अपेक्षा बालक का उपकारक होता है।
बालकादि को सत्ता ही बालकावि का उपकार है यह जो बात कही गयी है उसका प्राधार उपकार की यह परिमाषा है कि सशक्षण की उत्पत्ति ही उपकार है। इस प्रकार पूर्व बालक्षण से उत्तर बालक्षण की जो उत्पत्ति होती है वही बाल क्षण का उपकार है और उसमें बालक द्वारा गहामाण दुग्धक्षण हेतु होने से दुग्धक्षण बालक का उपकारक है। इसी प्रकार विसभाग-विसदृशक्षण की उत्पत्ति विरोध है। नफुल द्वारा सर्प का खण्ड होने पर जीवित सर से विसदृश मतलपक्षण को उत्पत्ति होती है-यही नकुल द्वारा सर्प का विरोध है । इस विसदृश उत्पत्ति का हेतु होने से नकुल सर्प का विरोधी होता है । यह विरोध भी सन्तान की अपेक्षा है क्योंकि नकुल से जीवित सर्प के सन्तान का उच्छेद हो जाता है । इसोप्रकार कपालादि की उत्पत्ति हो कपालादि का सहकार है। उस उत्पत्ति का हेत अर्थात कपालसन्तान का प्रवर्तक होने से मगरात कपालादि का सरकारी है। प्राशय यह है कि यदि मुदगर का सन्निधान न होता तो कपालक्षण की उत्पत्ति न होती और कपालक्षण को उत्पत्ति न होने पर कपालक्षण का सन्तान प्रवत्त नहीं होता। अतः कपालक्षण सम्तान का प्रवर्तक होने से मुद्गरादि कपालादि का सहकारी है ।। ६ ।।
ज्वों कारिका में एक अन्य भी बौद्ध शास्त्र के संवाद का उल्लेख किया गया हैतथैव चोक्तमन्यत्मूलम्—'सहकारिकृतो हेतोविशेषो नास्ति यद्यपि ।
फलस्य तु विशेषोऽस्ति तत्कृतातिशयाप्तितः ॥७॥ सहकारिकतो हेतोः घटादेः विशेषो नास्ति यद्यपि समानकालस्वाद द्वयोः, तथापि फलस्य तु-कपालादेः तत्कृतातिशयाप्तित: सहकारिकृतातिशयाप्तेर्चिलक्षणक्षणाऽभिन्नायाः विशेषोऽस्ति विद्यत एक, तदपेक्षयव घटक्षणमुद्रक्षणयोः सहकार्यसहाकारिभावादिच्यवहारात् ॥७॥
[सहकारिकृत विशेषता फल में होती है, हेतु में नहीं ] अन्त्य घटक्षणरूप हेतु में मुद्गररूप सहकारी द्वारा किसी विशेष का अस्तित्व नहीं होता, क्योंकि दोनों समानकालिक है। किन्तु कपालाविरूप फल में मुद्गररूप सहकारी द्वारा अतिशय की प्राप्ति होती है । अर्थात् मुद्गर के सहयोग से अन्त्यघटक्षण से कपालरूप विलक्षण क्षण की उत्पत्ति होती है इस प्रकार अन्त्यघरक्षणरूप हेतु में विशेष न होने पर भी उसके कपालरूप फल