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स्था० क० टोका एवं हिन्दी विवेचन ]
में विशेष होता हो है । उसकी अपेक्षा से ही घटक्षण और मुद्गरक्षण में सहकार्य और सहकारी भाव का व्यवहार होता है ॥ ७ ॥
व कारिका में यह बात बतायी गयी है कि घटाटि भाव का उक्त स्वभाव अर्थात् मुद्गरावि को प्राप्त करके हो घटादि कपालादि का जननस्वभाव होता है यह माने विना उक्त का अर्थात् मुद्गरादि का संविधान होने पर घटक्षण से कपालादिक्षण की उत्पत्ति का निर्वाह नहीं हो सकताइदं चोक्तं यथोक्तस्वभावाभ्युपगमं विना न निर्वहदित्याह---
- न चास्यातत्स्वभावत्वे स फलस्यापि युज्यते । सभागक्षणजन्माप्लेस्तथाविधतदन्यवत् ॥ ८ ॥
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मूलम
न चास्य हेतोः = वटादेः, अतरस्वभावत्वे - मुद्गरादिकमवाप्य कपालादिजननास्वभावत्वे सः = विशेषो विलक्षणक्षणात्मा फलस्यापि कपालादेः युज्यते । कुतः १ इत्याहसभागक्षणजन्माप्तः प्रदिक्षणोत्पत्तिप्रसङ्गात् । किंवत् १ इत्याह- तथाविधतदन्यवत् = घटादिजनन स्वभाववद्घटादिवत् । यद्यप्यत्र 'अन्त्यघटक्षण: कपालादिजननाऽस्वभावः स्याद् घटक्षण जनकः स्यात्' इति नापादनं संभवति, पदार्थों व्यभिचारात् तथाप्यन्य क्षणजनन
भावादर्थात तदापत्तिः, असमर्थत्वादन्त्यघटक्षणो नामसमान क्षणारम्भक इति 'मुद्गराद्यभावे समानक्षणान्तरोत्पादकापरसमर्थजननं तत्संनिधाने त्वसमर्थक्षणान्तरजनन मिति व्यवस्थाया मुद्गराहिना तत्सामर्थ्याविघातं दिन वक्तुमशक्यत्यात्; अन्यथा तवापि समर्थक्षणान्तरजननस्वभावस्य कारण परम्परायास्तस्यानपायात् सहेतुतोऽसमर्थजनन स्वभावस्यैव तस्योत्पत्तौ च प्रथमत एव संतत्युच्छेदप्रसङ्गात् ।
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[ सहकारिसन्निध्य को अकिंचित्कर मानने में आपत्ति ]
घटादि को अतत्स्वभाव मुद्गरादि को प्राप्त करके कपालादि का जनन स्वभाव न मानने पर कपालादिरूप फल का भी घट से विलक्षण क्षणरूप विशेष नहीं उपपन्न हो सकता क्योंकि उसी स्थिति में अन्त्य घटक्षण से भी सट्टशक्षण श्रर्थात् घटक्षण की हो उत्पत्ति का ठीक उसी प्रकार प्रसंग होगा जैसे घटादिजननस्वभावयुक्त पूर्व घटादिक्षण से उत्तर घटादिक्षण की ही उत्पत्ति होती है । इस प्रकार घट में अतत्स्वभावता मानने पर अन्त्य घटक्षण से भी घटक्षण की उत्पत्ति का प्रसंग अनिवार्य है ।
इस संदर्भ में यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि घटादि को अतत्स्वभाव मानने पर इस प्रकार आपादन नहीं हो सकता कि 'अन्तिम घटक्षण यदि कपालादिजननस्वभाव से शून्य होगा तो घटक्षण का जनक होगा' क्योंकि कपालावि जननस्वभावशून्यता तो पटादि में भी है, किन्तु वहां घटक्षणजनकता नहीं है इसलिए आपादन का नियम व्यभिचारी है । किन्तु ऐसा प्रापादन होगा कि 'अन्त्यघटक्षण यदि कप लादिजननस्वभावशून्य होगा तो घट क्षण का जनक होगा, क्योंकि घटक्षण से प्रत्यक्षण के जन्न का वह हेतु नहीं है, अतः श्रर्थतः घटक्षणजनकत्व की आपत्ति होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्यक्षण