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स्या क० टीका और हिन्दी विवेचना ]
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'अस्तु तर्हि अनायत्या घटाभावतादात्म्यमेव कपालादो, अधिकरणानतिरिक्ताभावस्य शशविषाणप्रख्यत्वात् , एकस्यैवाऽखण्डतया प्रतीयमानस्य नाशस्य सांवृतिकत्वात्' इति पक्षाङ्गीकारे परस्याह-तस्यैव-कपालादेरेव, अभवनत्वे तु-घटाऽभवनत्वे तु, तुनाऽभ्युपगमः सूच्यते, 'भावाऽविच्छेदतोऽन्योत्पादनस्य नाशाऽव्यवहारेण कपालरूपधटनाशे घटस्य तादात्म्यसम्बन्धस्वीकारे कपालतया घटस्य परिणामेऽपि 'घट एव कपालीभृत' इत्यर्थप्रतीयमानया भावतोऽविच्छित्या, अन्ययः सिद्धः । घटाऽसत्त्वस्याऽखण्डस्य स्वीकारे तु 'शशविषाणम्' इत्यादाविध षष्ट्यर्थाऽपर्यालोचनात स्यादप्यनन्वय इति भावः ॥२६॥
(कपालमें घटाभावतादात्म्य मानने में क्षणिकत्वभंग) यदि यह कहा जाय कि 'दूसरा चारा न होने से कपालादि के साथ घटामाव का तादात्म्य मानना प्रावश्यक है। क्योंकि कपालादि काल में घटका दर्शन नहीं होता और घटाभाव का भी कपालाविमिन्न रूप में दर्शन नहीं होता, अत: घटका दर्शन न होने से उस समय घट के प्रभाव का होना प्राप्त होता है । और कपालादि से भिन्न घटाभाव का दर्शन न होने से उसको कपालादिरूपता भी प्राप्त होती है, क्योंकि अधिकरण से भिन्न प्रभाव शशसोङ्ग के समान प्रसत् है किन्तु अधिकरण से अभिप्त प्रभाष शशसौंग के समान असत् नहीं है। और जो एक प्रखण्ड नाश को प्रतोति मानी जाती है वह सांयतिक-काल्पनिक है।"
तो यह भी ठीक नहीं है। कारण, यदि कपालादि को हो घद का प्रभाव माना जायेगा तो माय का अविच्छेद प्राप्त होगा । क्योंकि उत्तर वस्तु की उत्पत्ति में पूर्व वस्तु के नाश का व्यवहार नहीं होता। इसलिए यदि कपाल में होनेवाला घटनाश कपालरूप है. तब कपालोत्पत्ति और घटनाश इन दोनों को एक वस्तु को उत्पत्ति और अन्य वस्तु के नाशरूप नहीं माना जा सकता किन्तु इन दोनों को एककर्तृक मानना होगा । फलत: दोनों के कर्ता में ऐक्य होनेसे कपाल और घर में ऐक्य होगा। और घटनाश को कपाल रूप मानने से घटनाश में घटका तादात्म्यसम्बन्ध स्वीकृत हो सकेगा। फलत: घटनाश का अर्थ होगा घटका कपाल रूपमें परिणाम । और इस स्थिति में 'घट ही कपाल हो जाता है। इस प्रकार घटभाव यानी घट के अस्तित्व का अविच्छेद प्राप्त होगा। अर्थात् जो घट के रूप में प्रतीत-इष्ट होता था वह कपाल बन गया-कपाल रूपमें एष्ट होने लगा। इस प्रकार घट और कपाल दोनों अबस्थामों में एक वस्तु का अन्धय-प्रवर्तन सिद्ध होगा जिससे भाव के क्षणिकत्व के सिद्धान्त का ध्वंस हो जायेगा।
हाँ. यदि धटासस्थ को अधिकरण से अतिरिक्त एक प्रखण्ड प्रमाव माना आय तो जसे तुच्छ रूप में प्रतीत होनेवाले विषाण के साथ शश का कोई सम्बन्ध उपपन्न नहीं होता, उसी प्रकार घटाऽसत्त्व के साथ मो घटका कोई सम्बन्ध न होने से घटाऽसत्त्व कालमें घटका मनन्वय हो सकता है। किन्तु यदि घटाऽसत्त्व कपालादि रूप होगा तब तो घटाऽसस्य काल में घटके अन्वय का उक्त रोति से परिहारनी सकेगा। फलतः प्रभाव के प्रधिकरणात्मक पक्ष में क्षणिकरवसिमान्त की हानि प्रनिबार्य होगी ॥२६॥