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[ शा० वा० समुच्चय स्त० ४ श्लोक २६
' मा भूतु कपालादिकमेव घटाऽसत्रम्, तथाऽपि कपालादिदर्शनेन घटाऽसच्वमनुमास्यते'
इत्यत्राह
मूलम् - न तद्गतेर्गनिस्तस्य प्रतिबन्धविवेकतः ।
तस्यैवाभवत्वे तु भावाऽविच्छेदतोऽन्वयः ||२९||
न तद्गतेः = कपालादिदर्शनात् तस्य घटाऽसस्वस्य गतिः - ज्ञानम् । कुतः ? इत्याह- प्रतिबन्ध विवेकतः कपालादिघटाभावयोर्व्याप्यभावात् । "तादात्म्य तदुत्पत्तिभ्यामेव हि व्याप्तिः" इति सुगतसुतस्य सम्प्रदायः न च कपाले घटाभावतादात्म्यम् तदुत्पत्तिर्वा, इति न व्याप्तिरिति निगवः ।
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सकता क्योंकि कपालादि का दर्शन भावरूप में होता है। यदि वह घट का प्रभाव रूप होता तो उसका भाव रूप में प्रतुभव न हो कर प्रभाव रूप में ही अनुभव होता, क्योंकि प्रसत्त्व का सद्वप से अनुभव कभी किसी को नहीं होता ||२८||
( व्याप्ति दिना प्रसत्त्व के ज्ञान का प्रसंभव )
२६ व कारिका में कपालादि के दर्शनकाल में घट के श्रसत्त्वज्ञान का बौद्ध की प्रोर से उपपादन करके उसका निराकरण किया गया है ।
बौद्ध का आशय यह है कि कपालादि का मात्र रूप में दर्शन होने के कारण उसे घटाभाव रूप भले न माना जाय, किन्तु यह स्वीकार करने में तो कोई प्रापत्ति प्रतीत नहीं होती की कपालाकि सन्तान के समय घट का प्रभाव होता है और वह कपालादि के दर्शन से अनुमित होता है। इस कथन का श्राधारभूत अभिप्राय यह है कि घटदर्शन के बाद कपालादि सन्तान का आरम्भ होने पर भी यवि घटका अस्तित्व होता तो उसका दर्शन होना न्यायप्राप्त था । किन्तु उस समय उसका दर्शन नहीं होता, कपालादि का ही दर्शन होता है । अत: यह अनुमान बेरोकटोक किया जा सकता है कि उस समय घटका प्रभाव हो जाता है। अनुमान का प्रयोग इस प्रकार हो सकता है "घटदर्शनोत्तरकपालादिवर्शनकाल: घटाभाववान्, घटदर्शनोत्तरश्य मानकपासादिमत्त्वात् घट दर्शन के अनन्तर जिस काल में कपालादि का वर्शन होता है वह काल घटशून्य है या घटाभाववान् है, क्योंकि दर्शन के उत्तर काल में दृश्यमान कपाल का श्राश्रय हैं" ।
वह घट
किन्तु यह कपालादि के वर्शन से घटके प्रभाव का श्रानुमानिक ज्ञान मानना ठीक नहीं है क्योंकि कपाल में घटाभाव के प्रतिबन्ध यानी व्याप्ति का विवेक श्रमाय है । श्राशय यह है कि बोद्ध सम्प्रदाय में तादात्म्य और तदुत्पत्ति से ही व्याप्ति की उपपत्ति होती हैं, जैसे 'एष वृक्ष, शिशपाया:' यह वृक्ष है क्योंकि सोसम है । जो सीसम होता है वह सब वृक्ष होता है । अर्थात् जिसमें तादात्म्य सम्बन्ध से सोसम होता है उसमें तादात्म्य सम्बन्ध से वृक्ष होता है । तदुत्पत्ति से व्याप्ति ग्रह का उदाहरण है। वह्नि और धूम | अर्थात् धूम वह्नि से उत्पन्न होता है इसलिए धूम में वह्नि की व्याप्ति होती हैं, कपाल में न तो घटाभाव का तादात्म्य है, क्योंकि उसकी भावरूपसे प्रतीति होती है और न उसकी घटाभाव से उत्पत्ति होती है। अतः कपाल से घटाभाव का अनुमान नहीं हो सकता ।