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स्या क० टीका और हिन्दी विवेचना ]
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अत्रैवोपचयमाहमूलम्-एकत्र निश्चयोऽन्यत्र निरंशानुभवावपि ।
न तथा पाटवाभावादित्यपूर्वमिदं तमः ॥२५॥ एकत्र-सव निश्चयः अनुभवपाटवात् । अन्यत्र च-असत्वे निरंशानुभवादपि पाटवाभावात् न तथा न निश्या, इनीदमपूर्व तमः महत्तममनानम् , 'निरंशे एकत्र पाटवम् अन्यत्र न' इति विभागाऽभावात् । 'सत्वनिश्चयजननी शक्तिरेव पाटवम् , अमचनिश्चय हेतुशक्त्यभावश्चाऽपाटवम् , न तु तत्र विषयावच्छेदोऽपि निविशते. येन निरंशत्वविरोधः स्यादि' ति चेत् ? न, तद्विषयत्वेनैव तच्छक्तिनियमात , अन्यथा नीलादिस्वभावेऽप्यनाश्वासप्रसङ्गात् । विसभागमततावसच निश्चयदर्शनेनाऽनुभवे तच्छक्तिकल्पनाऽऽवश्यकत्वाच्च, अन्यथा अतिप्रसगात सर्वाऽनुभवेऽपि मितनिश्रयः शक्तिसम्भवादिति दिक् ॥२६॥
है'-तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि इसकी उपपत्ति विषय के सत्त्व असत्त्व को मानकर साक्षात् भी की जा सकती है । प्रत: उसके लिए उक्त प्रप्रमाणिक कुसष्टि की कल्पना निष्प्रयोजन है ॥२४॥
(पटुता और अपटुता का निरंश में असम्भव) २५ वीं कारिका में पूर्व कारिका के अर्थ का ही उपोद्वलन समर्थन किया गया है। प्राशय यह है कि भाव जब वस्तुगत्या निर्धर्मक-निरंश है, तो यह कहना कि "वस्तु में सत्त्व का निश्चय हो सकता है क्योंकि सत्त्वग्राहो वस्तु का अनुभव सत्वनिश्चय के अनन में पटु होता है किन्तु असत्त्व का निश्चय नहीं हो सकता क्योंकि यद्यपि उसका निरंश अनुभव- निविकल्पक ग्रहण-अनुभव होता है फिर भी उसमें प्रसत्त्व निश्चय उत्पन्न करने को पटुता नहीं होती। इसलिए असत्त्व का निश्चय नहीं होता ।"-यह बौद्धों का कथन एक विचित्र अन्धकार है, अत्यन्तविशाल प्रज्ञान ही है । क्योंकि भाव और उसका निर्विकल्पक अनुभव वोनों ही निरंश है । इसलिए उसमें सत्व निश्चय उत्पादन की पटुता और असत्त्व निश्चय उत्पादन को प्रपदता के विभाग को कल्पना नहीं हो सकती । यदि यह कहा जाए कि-"सत्वनिश्चय को उत्पादिका शक्ति पढ़ता है और प्रसस्व निश्चय के उत्पादक शक्ति का अभाव ही अपटुता है और अपटुता की कुक्षि में विषयभेद का प्रवेश नहीं है । प्रतः निरंश भाव के निविकारक ग्रहण में उक्त पटुता और अपटुता के कारण निरंशत्व का विरोध नहीं हो सकता"-तो यह ठीक नहीं है। क्योंकि भावके निरंश अनुमय में निश्चयजनिका शक्ति सत्त्वविषयकत्वावच्छेदेन और शक्ति का प्रभाव असत्त्यविषयकत्यावच्छेदेन मानना होगा । अतः पाटव-प्रपाटव के द्वारा निर्विकल्पक ग्रह के निरंशत्व का विरोध अनिवार्य है । तथा यदि ऐसा नहीं मानेगे तो वस्तु को नीलादिस्वभावता भी अविश्वसनीय हो जायेगी । तथा वस्तु को विसभाग-बिसदश सन्तान में असत्त्व का निश्चय देखा जाता है इसलिए अनुभव में प्रसत्त्वनिश्चय की उत्पादक शक्ति की कल्पना प्रावश्यक है। प्राशय यह है कि किसी वस्तु का सहशसन्तान जब तक अनुवर्तमान होता है तब तक तो उस वस्तु के असत्त्व का निश्चय नहीं हो सकता है । किन्तु जब उसका विसदृश विशिष्ट सन्तान प्रादुर्भूत होता है तो उसके