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स्या० क० टीका-हिन्दी विवेचना ]
अथ तत्तज्जननभावत्वशब्दार्थ पर्यालोचनयाऽप्यन्त्रयसिद्धिरित्याहमूलं तसज्जननभावस्वे ध्रुवं तद्भावसंगतिः 1 तस्यैव भावो नान्यो यज्जन्याच्च जननं तथा ॥ ११८ ॥ तत्तज्जननभावत्वे-तस्य कारणस्य मृदादेस्तज्जननभावत्वे घटादिकार्यजननस्वभावस्वे उच्यमाने बुधं निश्चितम् तद्भावसङ्गतिः कारणभावपरिणतिः कार्ये उक्ता भवति । क्रुतः ९ इत्याह-यदू=यस्मात् तस्य = जननस्यैव भावो नान्य. - न जननादर्थान्तरभूतः, असंबन्धप्रसंगात् जन्याच्च जननं तथा=न मिनमित्यर्थः ।
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अयं भाव: 'मृद् घटजननस्वभावा' इत्यत्र घटस्य जनने निरूपितत्वाख्यस्वरूपसंबन्धेन, तस्य च स्वभावे तादात्म्याख्यस्वरूपसंबन्धेन तस्य च मृदि तेनान्वयाद् घटाभिनजननाभिन्न
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क्योंकि यदि कारण और कार्य में कोई श्रन्वय न होगा तो उक्तस्वभाव की कल्पना उक्त प्रकार से युक्तिहीन होगी । जब घटादि ब्रव्य में मृव द्रव्य का और प्रतिज्ञानादि में बोध का श्रन्यय उक्त स्वमाको उपपत्ति के लिये प्रावश्यक है तो यह तभी सम्भव हो सकता है जब मुद्दस्य और बोध को क्षणिक न मानकर स्थिर माना जाये ॥११७॥
११८ वीं कारिका में यह बात बतायी गई है कि तज्जननस्वभावस्व शब्द के अर्थ का पर्यालोचन करने से भी कार्य में कारण के अन्वय की सिद्धि होती है ।
मिट्टी आदि में घटादि कार्यों के जनन का स्वभाव मानने पर घटावि कार्य में तद्भाव यानी मिट्टि आदि रूप कारण के श्रन्वय की सिद्धि निश्चित हो जाती है। क्योंकि मिट्टो प्रादि में जो घटादि कार्यजननस्वभाव है यह घटाद्यात्मकत्वरूप ही है अर्थात् मिट्टी आदि घटादिजनन स्वभाव है इसलिए घटाव का उत्पादक होता है । इस कथन का तात्पर्य यह है कि मिट्टो प्रावि कथश्वित् घटाद्यात्मक है इसीलिए घटादि का उत्पादक होता है पटावि का उत्पादक नहीं होता है । इस बात को व्याख्याकार ने कारिका के उत्तराधे की व्याख्या से संकेतित किया है । व्याख्याकार ने 'तस्यैव भावः' का अर्थ किया है 'जननस्यैव भाव जननान्नार्थान्तरभूतः " जिसका श्राशय यह है कि मिट्टि आदि में जो घटादिजननस्वभाव है वह घटादिजननरूप है उससे मिल नहीं है और घटादिजनन का अर्थ है घटादि की उत्पत्ति | यह उत्पत्ति भी घट का धर्म होने से घटक है क्योंकि ऐसा न मानने पर मिट्टी आदि के साथ घटादि का असम्बन्ध होगा । जब मिट्टी ग्रादि को प्रसम्बद्ध का उत्पादक माना जायगा तो सर्वोत्पादकत्व की प्रापत्ति होगी । इस प्रकार मिट्टी आदि घटजननस्वमायात्मक होने का श्रथ है मृदादि का कश्वित् घटाद्यात्मक होना ।
[ मिट्टी और घट के अभेव का उपपादन ]
इस कारिका के अभिप्राय को व्याख्याकारने यह कहते हुये प्रकट किया है कि मिट्टी घटजनन स्वमावाली यह जो व्यवहार होता है उसमें मिट्टी ब्रष्य धर्मी है और घटजननस्वनाथ उसके धर्मरूप में व्यवहार्य है और धर्म-धर्मो में प्रभेद होता है। इसलिये स्वभाव का मिट्टी द्रव्य के साथ प्रमेव सम्बन्ध से प्रत्यय होता है। जनन स्वभाव जनन से भिन्न नहीं हैं इसलिये जनन शब्दार्थ के साथ घट