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म्या० का टीका और हिन्दी धिवेषना ]
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तदा भवत्विदं समाधानम् । परमितरत्र अविनाभावग्रहस्थले, इत्यम् उक्तप्रकारेण एकमेव ज्ञानं एकाकारपरित्यागान्याकारोपादानेन तद्ग्राहि-धृमानलग्राहि, भाव्यतां विमृश्यताम् ।। पक्षान्तरनिरासेनाधिकनमेव समर्थयन्नाह -
तदभावेऽन्यथा भावस्तस्य सोऽस्यापि विद्यते।
अनन्त रचिरातोत तत्पुनर्वस्तुनः समम् ॥१४॥ अन्यथा तत्तथामावेन विशेषानभ्युपगमे, तदभावे अग्निज्ञानाभावे, तस्य-धूमज्ञानस्य भाव उत्पादः अन्धुपगतो भवति, गत्यन्तराभावाद । न चैवं विशेष इत्याह सः
बौद्ध मत में परिणामवाद की प्रापत्ति) ग्रन्थकार का कहना है कि नारिकेल वीपवासी का धमजान से पूर्व होनेवाला अग्निशान तथा समनन्तर नहीं है-बौद्ध के इस कथन के सम्बन्ध में यह कहते हुये खेद होता है कि बोध को अपने कथन के तथा शब्द का अर्थ ज्ञात नहीं है । और वाक्याय को विना समझे वाक्य का प्रयोग करना अत्यन्त प्रचित होता है । यदि बौद्ध की ओर से तथा न होने का प्रर्थ 'अग्नि ज्ञान का धमज्ञानरूप में परिणत होना' किया जाय, प्रभाव की प्रोसे पहप्राशय पित किया आप कि नारिकेल द्वोपवासी का धमज्ञान अग्निशान के परिणामरूप में नहीं उत्पन्न होता और जो धमज्ञान प्रग्निज्ञान के परिणाम रूप में उत्पन्न होता है वही अग्निशान रूप समनन्तरोपादान पूर्वक होता है और वहीं अग्नि का अनुमापक होता है तो यह सनाधान कश्चित् शक्य होने पर भी चौद्ध के लिये अनुकुल नहीं हो सकता क्योंकि नारिकलपवासी के घूमज्ञान के सम्बन्ध में इस प्रकार का प्रतिपादन करने पर जिस पुरुष को धूम-अग्नि का अविनाभाव ज्ञात है उस पुरुष के धमज्ञान के सम्बन्ध में बौध को यह कहना होगा कि वह धमज्ञान प्रग्नि जान का परिणामरूप है और इस कयन पर विचार करने पर यहो निष्कर्ष स्वीकार करना होगा कि एक हो ज्ञान पूर्व प्राकार का परित्याग कर अन्य प्राकार को ग्रहण करके धूम और अग्नि का ग्राहक होता है । यदि नारियल द्वीपवासी के धमज्ञान और अधिनाभावग्रहस्थलोय धूमज्ञान का उक्त विभिन्न रूप से प्रतिपावन नहीं किया जायगा तो दोनों में बेलक्षण्य सिद्ध न होने से एक से अग्नि के अनुमान का लक्ष्य न होने का और दूसरे से अग्नि के अनुमान के उदय होने का समर्थन नहीं किया जा सकेगा ।।१०३॥
१०४ धीं कारिका में उक्त उत्तर के सम्बन्ध में बौद्ध के एक और समाधानात्मक पक्ष का निरास करते हुये उस के विरुद्ध विचाय
चार्यमाण पक्ष का समर्थन किया ग
[अग्निज्ञान के प्रभाव में धूमज्ञान-उद्भव तुल्य है] बौद्ध की ओर से उक्त उत्तर के प्रतिवाद में यदि यह पक्ष प्रस्तुत किया जाय कि 'अविना. मायग्रहस्थ लोय धमज्ञान अग्निज्ञान का परिणाम नहीं होते हुये भी अग्निज्ञानोपादानक है और नारिकेल द्वोपधासी का धमज्ञान अग्निशामोपाचानक नहीं है तो यह पक्ष मी ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि अधिनाभावग्रहस्थलीय धूमज्ञान को अग्नि ज्ञान उपादानक न कहने का अर्थ यह होगा कि वह बमझान अग्निज्ञान के अभाव में उत्पन्न होता है। क्योंकि उस कथन की इस निष्कर्ष से अतिरिक्त कोई गति नहीं है । अब ऐसा मानने पर नारिकेलद्वीपवासी के धुमशान भौर अयिनामावग्रहस्थलीयमशान