________________
स्या० का टीका-हिन्दी विवेचना ]
[ १४३
अत्र च प्रत्येकजन्यत्वस्वभावपक्षे च उक्तं 'यज्जायते' (का० ७२) इत्यादि । दोपान्तरमाह न चापि एषाम् अधिकृतसमनहेतूनाम् सरस्वभावत्वकल्पना-प्रकृतफलजननम्वभावत्वकल्पना, अतिप्रसंगादेर्दोषान् साध्वी न्याय्या; समग्रान्तराण्यपि तज्जननस्वभावानि भवन्त्रित्यतिप्रसङ्गः । आदिशब्दादक एव तज्जननस्वभावोऽस्तु, शेपा उपनिमन्त्रितकन्या इत्यादि दोषसंग्रहः । एवमपि तत्स्वभावत्योक्तौ दोपमाह--अन्यथाऽप्युबिमसं मचातसमयान्तराणामपि तत्स्वभावत्ववचनसंभवात् , युक्तिवैकल्यस्य चोभयसाधारणत्वात् । 'इतिः' आद्यपक्षसमाप्त्यर्थः ॥७॥ उत्पत्ति की प्रापत्ति होगी । जैसे, दंउ चक्क-चीवरादि घटित सामग्री से घट उत्पन्न होता है, किन्तु सामग्रोघटक दंडादि प्रत्येक भाव अपने सन्तान में अपने सजातीय दंडावि का ही जनक होता है घट का जनक नहीं होता है । फलतः घट के प्रजनक व्यक्तियों के समूह से हो घट की उत्पत्ति होती है। तो जब घट को घर के प्रजनक व्यक्तियों के समूह से ही उत्पन्न होना है तब तुरीतन्तु वेमादि के समूह से भी घट को उत्पत्ति होनी चाहिये क्योंकि घट को अजनकता प्रत्येक दंडकादि और प्रत्येक तुरीतन्तुमादि में समान है।
मूल कारिका में प्रतिप्रसंगादि' में आदि शब्द से और अन्य प्रकार के दोषों को सूचना दी गई है जैसे यह कि-सामग्नीघटक व्यक्ति जब सामग्री काल में ही सन्निहित होते हैं उससे पूर्व उसका अस्तित्व नहीं होता तो उनमें से किसी एक को हो कार्य विशेष के उत्पादक स्वभाव से सम्पन्न माना जा सकता है और दूसरे कारण उपनिमन्त्रित-मुख्य अतिथि के साथ प्राये हुये अन्य के समान अन्यथासिद्ध हो सकते हैं। इन सब त्रुटियों की ओर ध्यान न देते हुये भो यदि एक समूह विशेष को कार्यविशेष के उत्पादक स्वभाव से सम्पन्न माना जा सकता है तो जिस समूह से यह कार्य विशेष नहीं उत्पन्न होता उसमें भी उस कार्य के उत्पादक स्वभाव का प्रतिपादन हो सकता है। क्योंकि कार्य विशेष के प्रजनक व्यक्तियों के एकसमूह में कार्यविशेष के उत्पादन का स्वभाव है और उसी प्रकार के दूसरे समूह में उसके उत्पादन का स्वभाव नहीं है ऐसा मानने में कोई विनिगमना नहीं है, क्योंकि दोनों ही समूहों में युक्तिविरह समान है। कारिका में 'साध्यो' शब्द के अनन्तर 'इति' शब्द का प्रयोग प्रब तक विचार्यमाण प्रथम पक्ष के विचार को समाप्ति का द्योतक है ॥७५॥
असत् कार्यवादी के सम्बन्ध में बौद्धों द्वारा प्रस्तुत 'सामम्रो पक्ष' के दो विकल्प प्रस्तुत किये गये हैं (१) एक विकल्प यह कि जिन व्यक्तियों के एकत्र सह सनिधान के अनंतर किसी कार्य को उत्पत्ति होती है उत व्यक्तियों की एक देश और एक काल में संनिधान रूप सामग्रो उस कार्य को उत्पादक होती है, सामग्रीधटक व्यक्ति उत्पादक नहीं होते । यह सामग्रो पक्ष का प्रथम विकल्प है जिसे 'सामग्री पक्ष' शब्द से भी कहा जाता है। (२) दूसरा विकल्प यह है कि सामग्री घटक प्रत्येक व्यक्ति सामग्री के प्रनतर उत्पन्न होने वाले कार्य के उत्पादक होते हैं। कार्य को उत्पत्ति में उन सभा व्यक्तित्रों को समान अपेक्षा होती है। क्योंकि उन में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो अन्य व्यक्तियों से असन्निहित होकर उस कार्य का प्रादुर्भाव करें।