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[ शा० वा. समुनय स्त० ४ श्लोक ७४
कुतः ? इत्याह
प्रत्येक तस्य तद्भावे युक्ताय क्तस्वभावता।
न हि यत्सवसामयं तत्प्रत्येकत्ववर्जितम् ॥७॥ तस्यबुद्धयादः कार्यम्य प्रत्येक रूपादिकमेकैकमपेक्ष्य मावे तेभ्य उत्पतिस्त्रभावत्वे, हि-निश्चितम् , उक्तस्वभावता-सर्वमामयभृतिस्वभावता युक्ता। अत्रोपपत्तिमाह-न हि यन् सर्वसामर्थ्य नाम सत् प्रत्येकत्ववर्जितमः प्रत्येकसामर्थ्यमिन्नम् । प्रत्येकाऽवृत्तेः समुदायाऽवृत्तित्वनियमादिति भावः । ७४॥ प्रत्येकसामयं च परिहतमेवेति दर्शयति
अम्र चोक्तं न चाप्येषां तरस्वभावत्वकल्पना । साध्वीस्पतिप्रसङ्गादेरन्यथाप्युक्तिसंभवात् ॥७॥
कारणों के सम्मिलित सामर्थ्य से उत्पन्न होता है । उत्पत्ति के अतिरिक्त उस में कारणसामथ्र्य मूलक कोई वलक्षण्य नहीं होता। इस सम्बन्ध में ग्रन्थकार का संकेत है कि बौद्धका यह कथन भी युक्तिसंगत नहीं हो सकता ॥७३॥
७३ वी कारिका में जिस युक्ति से बौद्ध के अभिप्राय की असंगति का संकेत किया गया है उस युक्ति का ७८ वो कारिका में उपन्यास किया गया है
बीन्द्रों का यह कहना कि 'कार्य का स्वभाव है कि वह सामग्रीघटक कारणों के सम्मिलित सामध्य से उत्पन्न होता है तमी संगत हो सकता है जब सामग्रीघटक कारणों के सम्मिलित र से उत्पन्न होने वाले कार्य में सामग्रोघटक एक एक कारण के सामर्थ्य से भी उत्पन्न होने का स्वभाव हो । कहने का प्राशय यह है कि सामग्री में उसी कार्य के उत्पादन का सामर्थ्य या स्वभाव माना जा सकता है जिस कार्य के उत्पावन का स्वमाष सामग्रीघटक प्रत्येक कारण में हो। क्योंकि, सामग्री सपने घटक एक एक कारण से मिन्न नहीं होती। इसी प्रकार सामग्रोघटक कारणों का सामथ्र्य-समूह मी सामग्रीघटक प्रत्येक कारण के सामर्थ्य से भिन्न नहीं होता | अतः कार्यविशेष की उत्पादकता यदि सामग्रोघटक प्रत्येक कारण में या प्रत्येक कारणगतसामर्थ्य में नहीं रहेगी तो कारणसमुदायरूप सामग्री अथवा कारणसामध्यसमदाय में भी नहीं रह सकती, क्योंकि यह नियम है कि जो प्रत्येक में नहीं रहता यह समुदाय में भी नहीं रहता ॥७४। ___सामग्रीघटक प्रत्येक कारण अथवा प्रत्येक कारणगत सामर्थ्य को सामग्री से उसन्न होने वाले कार्यविशेष का उत्पादक मानने पर जो वोष ७२ वी कारिका में कहा गया था, ७५ वीं कारिका में उस दोष का स्मरण कराने के साथ उस पक्ष में अन्य दोष का उद्भावन किया गया है___ सामग्रीजन्य कार्य में सामग्रीघटक प्रत्येकजन्यत्व मानने पर 'यज्जायते' इत्यादि ७२ वीं कारिका में दोष बताया जा चुका है । कार्य को सामग्रीअन्तर्गत प्रत्येक घटक से जन्य म मान कर केवलसामग्रीजन्य मानने में यह दोष है कि जैसे कार्य के प्रजनकव्यक्तियों के एकसमूहरूप सामग्री से किसी कार्य को उत्पत्ति हो सकती है उसी प्रकार कार्य के प्रजनक अन्य व्यक्तियों के समूह से भी उस कार्य को