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स्था० क० टीका-हिन्दी विवेचना ]
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सामग्रीपशमपि स्फुटतरं विक्षिपतिमूलम्-यापि रूपादिसामग्री विशिष्टप्रत्ययोद्भवा ।
जकनत्वेन बद्धयादेः कल्प्यते साऽप्यनर्थिका ॥६६॥ यापि रूपादिसामग्री-रूपा-ऽऽलोक मनस्कार-चक्षासंनिधानरूपा, विशिष्टप्रत्ययोद्भवा-स्वहेतुसंनिधिपरम्परोपजनितविशेषा, बुद्ध्यादेः कार्यजातस्य, जनकत्वेनाऽन्त्येवर कल्प्यते, समर्थस्य कालशेपाऽयोगेन कार्याजनकानां सामरधामननुप्रवेशात् । साऽपि स्वोपक्लुप्ता सामग्रयपि, अनर्धिका--प्रयोजनविकलकल्पनाविषया ॥६६॥ तथाहि
मूलं-सर्वेषां बुद्धिजनने यदि सामर्थ्य मिष्यते ।
रूपादीनां ततः कायभेदस्तेभ्यो न युज्यते ॥६७) प्रतिबन्धकतावच्छेवक कोटिप्रविष्ट समवेतत्व का समझायसम्बन्ध से वृत्तित्व' ऐसा अर्थ न करके सम. वायस्थानीय वर्शनान्तरस्वीकृससम्बन्ध से युतित्व' यह प्रर्थ किया जा सकता है । इस विषय में अधिक विस्तृत विचार व्याख्याकारकृत ज्ञानार्णव स्याद्वावरहस्य-न्यायालोक प्रावि ग्रन्थ में हष्टव्य है ॥६५॥
पाठयो कारिका में किये गए निर्देश अनुसार ६ वी कारिका से ६५ वी कारिका तक सन्तान पक्ष की दृष्टि से प्रस्तुत समाधानों को समीक्षा पूर्ण हुई। अब ६६ वी कारिका से इस सामग्री पक्ष को आलोचना की जाने वाली है कि कार्य की उत्पत्ति सम्मपो से होती है। सामग्री को कार्य का उत्पादक मानना सभी को आवश्यक होता है क्योंकि एक एक कारण मात्र से कार्य की उत्पत्ति नहीं होतो और सामग्री सभी के मत में क्षणिक होती है। अतः प्रक्रियाकारित्य क्षणिक में ही होता है, स्थिर में नहीं।'
[सामग्री पक्ष को कल्पना प्रयोजनशून्य है] रूपादिघटित सामग्री जो रूप-पालोक-मनस्कार और सहश प्रत्यय चक्षुः प्राधि के सन्निधान रूप है और जिसका उद्भव विशिष्ट प्रत्ययों के, अर्थात रूप पालोक प्रादि हेतुत्रों के सन्निधान की परम्परा से कार्योत्पत्ति के प्रयोजक विशेष के साथ होता है, और जो बुद्धचादि कार्यों के अन्तिम उत्पावक रूप में स्वीकार की जाती है. और जिस में कार्य के प्रजनक का प्रवेश नहीं होता, क्योंकि समर्थ कारण द्वारा विलम्ब से कार्योत्पत्ति मानने में युक्ति नहीं है, वह सामग्री भी निरर्थक है। अर्थात् ऐसी सामग्री की कल्पना का कोई प्रयोजन नहीं है, क्योंकि इस सामग्री में जब कार्यानुत्पावक का प्रवेश नहीं होता किन्तु उसके प्रत्येक घटक कार्य के अव्यवहित पूर्व क्षण में हो सन्निहित होते हैं तब उसमें से एक मात्र को हो कायोत्पादक मान लेना पर्याप्त हो जायगा 11EETA ६७ वीं कारिका में मो बौद्धसम्मत सामग्री पक्ष की मालोचना की गई है
[बुद्धिविजातीय कार्यों को उत्पत्ति का असंभव ] रूपावि समस्त कारणों को यदि बुद्धि जैसे एकजातीय कार्य के हो उत्पादन में समर्प माना जायगा तो उनसे विजातीय कार्यों की उत्पत्ति नहीं होगी। जब कि सौत्रान्तिक और माषिक के
* अन्त्या-यदव्यवहितोत्तरक्षणे कार्य संपद्यते तत्क्षणवतिनी।