________________
या० का टीका-हिन्दी विवेचना ]
[१३
मृदूषघटत्वावच्छिन्नं प्रत्येव हेतुत्वाद् नापं दोष इति वाच्यम् , स्फुटगौरवात , कार्यगतयावद्धर्माणां कायर्तावच्छेदके प्रवेशप्रसङ्गात् , कारगगतमृद्रपकार्यसंक्रमेऽन्वयप्रसंगात , अतिरिक्तस्याअनिर्वचनाच । तस्माद् घटयोग्य जाया घटहेतुत्वं विना न निर्वाह इति सूक्ष्ममीक्षणीयम् ॥१७॥ पराभिप्रायमाशङ्कय परिहरति-- मूलं-योऽप्येकस्यान्यता भावः संताने दृश्यतेऽन्यदा ।
तत एव विदेशस्थात्सोऽपि यत्तन्न बाधकः ॥५८||
से घटकुर्वपत्व विशिष्ट दण्डादि को कारण मानकर इन सभी कारणों का एक देश में सत्त्व उपपन्न किया भी जाय तो इस से भी कार्यके उत्पत्ति वेश का नियमन नहीं हो सकता, क्योंकि मृत्पिण्डक्षरण रूप देशमें भी घट क्षण की उत्पत्ति नहीं होगो । कारण, मृत्पिण्ड क्षरण घटक्षण को उत्पत्ति काल में नहीं रहता।
यदि यह कहा आप कि मिट्टो हर टक्षण के प्रत्ति घटकुर्वपत्वविशिष्ट मिट्टी क्षण को कारण मानने से उक्त अनुपपत्ति-कारण विशेष से कार्य विशेष के नियम को अनुपपत्ति'नहीं हो सकती-तो यह भी ठीक नहीं है । क्योंकि मिट्टी क्षण को ही मिट्टो रूप घट क्षण के प्रति कारण मानने से दण्डनकादि रूप घटकुर्वपत्व क्षण से मिट्टी से भिन्नरूप घट को उत्पत्ति को प्रापति होगी। यदि इस दोष के परिहार के लिये दण्डादि को भी मिट्टीरूप घटत्वावच्छिन्न के प्रति हो कारण माना जायगा तो स्पष्ट गौरव होगा। क्योंकि घटस्व को कार्यतावच्छेदक मानने की अपेक्षा मिट्टी रूप घटत्व को कार्यतावच्छेदक मानने में स्पष्ट गौरव है । दूसरी बात यह है कि मिट्टीरूपत्व स्वरूप कार्यधर्म को कार्यतावच्छेदक माना जायगा तो घटके अन्य अनेक धर्मों का भी विनिगमना विरह से कार्यतावच्छेदककोटि में प्रवेश प्रसक्त होगा और कारणगत मिट्टीरूप का घटात्मक कार्यमें सक्रमण मानने पर मिट्टीरूप से घटात्मक कार्य में पिण्डात्मक कारण के अन्वय को प्रसक्ति होगी क्योंकि कारण से प्रतिरिक्त उसके मिट्टीरूप का निर्वधन नहीं हो सकता । प्रतः यह कहना कि-"घटोत्पादकता की नियामक घट-योग्यता है और घट-योग्यता घटकुर्वपस्वस्वरूप है और वह मत्पिण्ड-बण्डादि में हो है, तन्तुमादि में नहीं, अत: मपिण्ड-दण्डादि से ही घटको उत्पत्ति होती है, तन्तुमादि से नहीं'-सङ्गत नहीं हो सकता। क्योकि घट्योग्यता की कल्पना घटहेतुरव द्वारा ही माननी होगी, अर्थात् मिट्टो प्रावि घट का हेतु और तन्तुनावि को घटका अहेतु मानकर के ही यह कहा जा सकता है कि घटकुर्वदप घट्योग्यता महिपण्डादि में है और तन्तु प्रादि में नहीं है । तथा घट हेतुस्व की उपपत्ति समानदेशत्वादि के विना असम्भव है । अतः भाव के क्षणिकस्व वादी बौद्ध मत में कारण और कार्य में समानदेशताप्रावि का सम्मथ न होने से कारणविशेष से कार्यविशेष की उत्पत्ति के नियम का निर्धारण नहीं किया जा सकता। यहो कारिका का सूक्ष्म निरीक्षणलभ्य निष्कर्ष है ॥५७।।
[समानदेशत्व का प्रभाव बाधक नहीं है-बौद्ध ] ५८ वौं कारिका में जन धादी से उद्भावित उक्त दोष के परिहार सम्बन्ध में बौद्ध के एक अभिप्राय को शङ्का रूपमें प्रस्तुत कर उसका परिहार किया गया है । कारिका का अर्थ इस प्रकार है