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स्था० क० टीका और हिन्दी विवेचना ]
यदि चैवमपि साधकत्वमिष्यते, तदाऽतिप्रसङ्ग इत्याहमूल - साधकत्वे तु सर्वस्य ततो माचः प्रसज्यते । कारणाश्रयणेऽप्येवं न तसत्त्वं तदन्यवत् ॥ ४५ ॥
साधकत्वे तु तस्य निरवधिक एवाभ्युपगम्यमाने, सर्वस्य = कार्यजातस्य ततः कारणाद भावः = उत्पादः प्रसज्यते तस्याऽसत्साधकत्वेनाविशेषात् । उपसंहरन्नाह एवम् = उक्तेन न्यायेन, कारणाश्रयणेऽपि कार्यविशेषार्थं कारणविशेषानुसरणेऽपि न तत्-प्रतिवितकार्यसम्यम्, तदन्तत् ततोऽन्यत्रेव योग्यताभावाऽविशेषात् नाना कार्य जननी तत्तद्धेतुव्यक्तिनां तद्व्यक्तिजनकत्वमेव स्वभाव इत्यस्य वक्तुमशक्यत्वात्, तत्स्वभावानुप्रविष्ट त्वेन तद्वदेव प्रसङ्गाच्चेति ॥ ४५ ॥ दोषान्तरमाह -
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मूलं किञ्च तत्कारण कार्यभूतिकाले न विद्यते ।
तनो न जनकं तस्य तदाऽसत्त्वात् परं यथा ॥ ४६ ॥
किश्च तत् = पराभिप्रेतं कारणं कार्यभूतिकाले कार्योत्पादसमये न विद्यते क्षणिकत्वात्, यत एवं ततो न जनकं तस्य कार्यस्य । कुतः ? इत्याह तदाऽसत्त्वात् कार्यभूतिसमयेऽमच्चात् । किंवत् १ इत्याह- परं यथा - कारणकारणवदित्यर्थः ||४६ || आशंकाशेषं परिहरति
[ प्रसत्कार्यवाद में सर्वकार्योत्पत्ति को प्रापत्ति 1
४५ वीं कारिका में कारण को श्रसत् कार्य का उत्पादक मानने पर एक कारण से सभी कार्यों की उत्पत्ति के प्रसङ्गका प्रतिपादन किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है, साधकता कारणता को यदि भावी कार्य रूपी अवधि से निरपेक्ष माना जायेगा तो एक कारण से समस्त कार्यों की उत्पत्ति का प्रसङ्ग होगा, प्रापत्ति होगी । क्योंकि जब कारण को असत् का ही उत्पादन करना है तो समस्त कार्यों में समान रूपसे प्रसव होने के कारण, सब के प्रति उसका उत्पादक होना अपरिहार्य है ।
[ विशेष कार्य-कारण भाव भी प्रसत्कार्यवाद में प्रसंगत ]
एवं उक्त न्याय से कार्य विशेष के लिये कारणविशेष का उपादान मानने पर भी कारण विशेष से नियतकार्य का सत्त्य साधन नहीं हो सकता। क्योंकि, जैसे कारण विशेष में प्रत्यकार्यों के उत्पादन की योग्यता का अभाव होता है उसी प्रकार कार्यविशेष के उत्पादन की योग्यता का भी प्रभाव होगा। इसके प्रतिवाद में यह कहना शक्य नहीं है कि अनेक कार्यों के प्रति स्वरूपयोग्य होने पर भी तत्तत्कार्यव्यक्ति को ही उत्पन्न करना तत् तत् कारण व्यक्ति का स्वभाव है। इसके अतिरिक्त यह भी ज्ञातव्य है कि तत्तत्कार्यव्यक्ति की उत्पादकता को तत्तत्कारणव्यक्ति का स्वभाव मानने पर स्वभाव अपने प्रश्रय का सहमावी होने के कारण, कारणव्यक्ति के समानकाल में हो कार्य के अस्तित्व का मी प्रसङ्ग होगा ||४५ ॥