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[शा या समुच्चय स्त० ४.जोक ४०.४१
मूलं--असदस्पद्यते तद्धि विद्यते यस्य कारणम् ।
विशिष्टशक्तिमत्तच्च ततस्तत्सत्वसंस्थितिः ॥४०॥ तडितदेव वस्तु असदुत्पद्यते यस्य कारणं विद्यते । सच्च-कारण विशिष्टशक्तिमत् , प्रतिनियतरूपानुविद्धकार्थजननशक्तियुक्तम् , ततो हेतोः तत्सत्त्वसंस्थितिः तद्वयक्तेः प्रतिनियनसच्चव्यवस्था ॥४०॥ अनोत्तरम्-- मूलम्-अत्यन्तासति सर्वस्मिन् कारणस्य न युक्तितः ।
विशिष्टशक्तिमत्वं हि कल्प्यमानं विराजते ॥४१॥ अत्यन्तासति-सर्वथाऽविद्यमाने कार्यजाते, कारणम्य युक्तित: न्यायेन विशिष्टः शक्तिमत्त्वं प्रतिनियनजननस्वभारत्वं कल्प्यमानं न विराजते, सर्वथाऽवध्यभावात , अविद्यमानव्यक्तिनामवधित्वेऽतिप्रसङ्गात ; कथश्चिद्विद्यमानत्वेनैवावधित्वे नियमोषपत्तः ॥४॥
( कार्यरूपशक्ति का प्रभाव असत्कार्यवाद का समर्थक नहीं है ) तद्वयक्ति में रहनेवाली नियतकार्य को उत्पादकता तयक्तित्व स्वरूप ही होती है । तथा, तहानक्ति की उत्पत्ति उसी कारण से होती है जिसमें उस व्यक्ति को उत्पाविका शक्ति होती है। जैसे, घटमें विद्यमान जलाहरणरूप कायं की उत्पादकता घटस्वरूप है और घटको उत्पत्ति कपाल से होती है, क्योंकि उसमें घटोत्पादक शक्ति है । इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि नियत कार्यों को उत्पन्न करने वाली व्यक्ति की उत्पादिका शक्ति उस ध्यक्ति के कारण में होती है। किन्तु वह व्यक्ति अपनी उत्पत्ति के पूर्व स्वयं नहीं होती । इस पक्ष में वस्तु को यदि उसकी उत्पत्ति के पूर्व प्रत्यन्त प्रसत् माना जाय तो भो नियत कार्योत्पादक रूप में उसका अस्तित्व उसके कारणों द्वारा सम्पन्न हो सकता है। ऐसा मानने पर कार्यको उत्पत्ति के पूर्व कार्यके सद्भाव की प्रापत्ति नहीं हो सकती क्योंकि हेतुरूप कार्वजनिकाशक्ति कार्य अस्तित्व होने पर मो कारूप शक्ति का प्रभाव होता है। कहने का तात्पर्ययह है कि कार्य में नियतरूपसे उत्पन्न होने की शक्ति होती है जो कार्य रूप ही होती है। एवं कारण में उत्पादन को शक्ति होती है जो कारण स्वरूप होती है । कारणस्वरूप शक्ति तो कार्योत्पति के पूर्व रहती है, किन्तु कार्यस्वरूपशक्ति उत्पत्ति के पूर्व नहीं रहती। अत एव इस प्रक्रिया से कार्यकारण भाव मानने पर सत्कार्थवाद को प्रापत्ति नहीं हो सकती। इसी प्रकार शशशङ्गादिको उत्पत्ति का प्रसङ्ग भी नहीं हो सकता क्योंकि उसमें उत्पन्न होने की शक्ति ही नहीं है।
कारिका का अर्थ अत्यन्त स्पष्ट है, जो इस प्रकार है-उसी प्रसत् की उत्पत्ति होती है जिसका कारण विशिष्ट शक्ति से-अर्थात् नियत रूपसे सम्पन्न कार्य को उत्पन्न करनेवाली शक्ति से, युक्त होता है। उस कारण से ही उस व्यक्ति को सत्व में अर्थात नियतकार्योत्पायकरूप में स्थिति होती है ॥४॥
( असत् वस्तु उत्पादन की शक्ति का असंभव ) ४१ वीं कारिकामें पूर्वोक्त प्राशङ्का का उत्तर दिया गया है
कार्य को अत्यन्त असत् मानने पर उसे उत्पन्न करनेवालो शक्ति से युक्त कार की कल्पना में कोई युक्ति नहीं है । क्योंकि, जो वस्तु अत्यन्त असत् होगी वह किसी की अवधि (उत्तराबधि) नहीं