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[शास्त्रमानासमुकचय स्त० २-1ळा ३१
अथ नियतिवादमाहभूल-नियतेनैव रूपेगा सर्व भाषा भवनित गत् ।
मती नियतिजा हयंत लस्वरूपानुबंधाता ॥१॥ नियानव-सजातीय-विजातीयव्यावसन स्वभावानुगतेनैव रूपेण, सर्व मावा भवन्ति, यद्-यस्मात् हेतोः । ततो लि=निधितम् , पति-भावाः, निपतिजाः नै यत्यनियामफतवान्तरोड्याः । वन्नरमाइ-सास्वरूपानुवैधत नियतिकनप्रतिनियन पश्लेषान । दृश्यते हि तीणशसाधुपहतानामपि मरणनियतताभावेन मरणम् , जीवननि पनतया च जीवनमेवेनि १६१॥
इदमेय म्फुटमाहमलम्-यदेव गतो गाधनसदैव ततस्तथा ।
नियत जायत, न्यायात्क एतां पापितु क्षमः ? ॥२॥
यः घटादिकम् , यवैव-विक्षितकाल एव, यतः दण्डादेः, यावत विव झिनाल्पउपत क्षणों में प्रमुगत कार्यकारणभाव न होने पर भी मनुगत प्रयोज्यप्रयोजक.कभाष होमे से उप्त प्रयोज्यप्रयोजकभावरूप प्रयोजक के बल पर माकुरक्षसों और बीजक्षणों में व्याप्मध्यापकभाष सात हो सकता है ।- 'उक्त क्षणों में जैसे अनुगत कार्यकारणभाव नहीं होता उसी प्रकार अनुपात प्रयोग्यप्रयो. जकमाय मी नहीं हो सकता-" यह का नहीं की जा सकती, क्योंकि अनुगत काकारण माघ मामले में नियतसमय से पूर्व बीज से अंकुरोस्पतिही मापति वाधक है। किन्तु मनुगत प्रयोज्य-प्रयोजकमाव मानने में ऐसी कोई बाधा नहीं है क्योंकि यह नियम किसी को भी मान्य नहीं है कि 'जो जिस का प्रयोजक होता है उस से उसकी उत्पत्ति में बिलम्ब नहीं होता' । प्रतः भकुरोपत्ति से शिरपूर्व भी अंकुष्प्रयोजक की सत्ता मानने में कोई दोष नहीं होता। इस विषममें अधिक जानकारी'मध्यात्ममतपरीक्षा' नामक ग्रन्थ से प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार पूर्वोक्त युक्तियों से यह सिद्ध हो जाता है कि जगत स्वमायहेतुक ही है, प्रायझेनुक नहीं है । कहा भी गया है कि-'कादों की तीक्षणता मौर पथ एवं पक्षियों की विचित्ररूपता को कौन उत्पन्न करता है ? स्पष्ट है कि यह सब स्वभाव से ही सम्पन्न होता है, स्वमावधान में कामचार मथेच्छ प्रमुष्ठान का कोई परसर नहीं है अतः इस बार में सब से सब की उत्पति को प्रापत्ति नहीं हो सकती ५६॥ [स्वभाववादपरिसमात]
(नियतितत्त्व से सर्वकार्यसंपत्ति-नियतिवाद) ६१ वी कारिका में नियतिवाद को स्थापना करते हुये कहा गया है कि-सभी पवार्थ नियतरूप से हो उत्पन्न होते हैं। नियतरूप का अर्थ है-वस्तु का वह असाधारणधर्म जो उस के सजातीय और विजातीय वस्तुमों से प्यावृत्त होता है । यह रूप वस्तु के स्वमाम का अनुगामी होता है एवं साश पवाथों में स्वभाष से ही अनुगत होता है। मियतरूप से हो पदार्थों को इस उत्पति के अनुरोध से यह