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________________ या का टीका-हिन्दी विवेचन ] सधे घटादिस्वभावत्वाभावप्रसङ्गस्य वायकत्वान् , अवधीना नियतपूर्ववर्तित्वेऽपि तहतोपकारा जनकन्वेनाऽहेतुत्वान् । 'भवनस्वभावये घटः सर्वदा मदि' मि पेत् न, नदारेख भरनस्वभाषयात् । अथवा कारमानी-मुरम माया, उपादासनाम्येवोपादेयगतस्वभाव. रूपोपकारजनकस्पोपादेयहेतुत्वात् । न चोपकारेऽरयुपकारान्तरापेशायाम नवस्था, तम्य म्यत एवोपकनत्वात् । दण्वादीना दण्डरूपादीनामिव नियमाऽवधित्वेऽप्यन्यथासित्यम् । 'दण्डावू घटा' इति उपयहारस्तु 'इन्धनान पाकः' इसिवदेव |७|| इदमेवाह(मू-सर्व भायाः ग्वभावेन स्वस्वमा अथा तथा । घनन्तंऽथ निवने कामचारपराइमुत्राः ॥५८11 सर्वे भावाः, स्वभावन-सगतेन हेतुगतेन वा निमित्तेन तथा तथा विशिष्टसंम्भानाप्रनिनियतरूपेण, स्वस्थमाघे आन्मीयमनायाम , निनपु तेलम्' इतिवभिन्याती सप्तमी, ग्य-वभावमभिव्या येत्यर्थः, पर्तन्त भूत्वा तिष्ठन्नि । अथ नाशकाले निवर्तन्त-समावेन भाजो भनन्ति । किंभूनाः ? इन्याह-कामचारपराङ्मुम्बाः निगममावनिरपेक्षाः ||५|| मानने पर उसके आकाशस्वभाव काः आकाश का हीमा होने का मन होगा. उसी प्रकार काबावितस्य को भी आकाशनष्ठु मानने पर कावामित्व के घाविस्वभावाष का घवि का ही स्वभाव होने का मङ्गको नायगा । भवधि-कपाल आधि मद्यपि घट आदि के नियत पूर्ववत होते है किन्तु उनसे घट भाव में कोई उपकार नहीं होला अतः वे घट आदि के कारण नहीं हो सकते । ___ भवम उत्पन्न होना पवि घट आदि का स्वभाव मामा आयगा तो 'वस्तु कभी भी अपने स्व. भाव से शून्य महीं होती इस नियम के कारण सर्वच घट भाषिके उत्पन्न होते रहने को आपत्ति होगी।' -पशंका करना उचित नहीं है क्योंकि जित सम्म जिसकी उत्पति होती है खस समय ही उत्पन्न होगा जस वस्तु का सभाष होता , मत: कालान्तर में उसकी उत्पत्ति का आपादन नहीं हो सकता। (कारण शब्दार्थ का द्वितीय विकल्प) अथवा स्वभाव कार्यमान का कारण होता है। इस कथन में 'कारण' बाब का 'कायापिरकार का नियामक अर्थ मकर मुरूप अर्ध ही स्वीकार करना चाहिये और जपायाम के स्वभाव को ही उपादेयके भावरूप उपकार का जनक होने से जपावेय का कारण कामना कहिये। किसी का का कारण होने के लिये कारण को उसमें उपकार का जनम होना मावश्यक यह मामले पर उपकार मामक होने के लिये अपकार में उपकारातर को जनक मानने पर अनबस्मा का आपापन नहीं किया जा समता, क्योंकि उपकार उपकारान्तर के बिमा मी स्वयं ही उपकृत रहता है। देश अघि घटादि का नियत अवधि होने पर भी वरूप प्रालि के समान अन्यपातिक होते हैं। बसाव घर:' पर बम से होता है। यह पयहार घट के जन्म माने पिता भी उसी प्रकार हो सकता है जैसे पाक के पाजाय न होने पर भो 'दुरधमास पाक: यह व्यवहार होता है। अर्थात् पञ्चमी विभक्ति का अर्व मण्यत्व नहीं किन्तु जसरस्व मात्र है ॥५॥
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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