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प्या० टीका-हिन्दी विवेषन ]
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तत्क्षणस्यापि, अभेदेऽपि 'इदानी क्षण' इति व्यवहारात कालिफाधाराऽऽधेयभायनिद्धः । अतस्तसत्क्षणतमाशाना तसत्पूर्वक जम्मधार में मिलानुपरिर । ५ क्षमिकर शोन कार्यविशेषजननाद नातिरिक्तहेतुमिद्धिः । न च सत्क्षण एष तन्तौ पटादिकं जायते, घदादिकं त्यन्यत्र' इति देशनियमार्थतिरिक्तहेतुमिद्धिः, क्याचिकत्यस्य निन्य इबाऽनित्वेऽपि स्वभावतः एव भवात् , कादाचिन्कन्वम्यैव हेतुनियभ्यत्वात् अन्यत्राऽन्यापतेरभावात् । 'माणस्येवाऽन्येषामपि नियतपूर्ववर्तित्वात् कथं हेतुत्यप्रतिक्षेपः ?' इति पेत् 'अवश्यक्लप्त०' इत्याग्रन्ययामिद्विगतमामात । अत पर न पटन्धापत्रमिछम्मम्याऽऽम्भिकतापरथा तदयग्छिन्ने को काल सनिहित नरेगा वही सन कार्यों का कारण है अत: उसके सान्निधान से अब एक कार्य जत्पन होगा तो अन्य कार्यों के प्रति भी उस काल से भिन्न किसी कारण के अपेगौम न होने से उसो समय सभी कायों की उत्पत्ति अनिवार्य हो जायगी । यदि इस भापत्ति के परिहारार्थ तसा कार्य के प्रति तत्तत उपाधिविशिष्ट काल को कारण मारकर तसत् उपाधिषों का एक काल में सविधान न होने से एक काल में सभी कामों की उत्पत्ति का निराकरण किया जायगा सोतसत् उपाधि को ही कारण मान लेमे से कालकारणतावादही समाप्त हो जामया"
स आपत्ति का प्रतिकार मयताकिकों (कालवादी) को ओर से यह काकर किया जा सकता है कि मण स्वयं एक अतिरिका हाल है. किसो कालको उपाधि नहीं है क्योंकि यदि उसे हजन्यविभाग के प्रागमाव से विशिष्ट रूप माना जायगा तो विभाग उत्पन्न हो जाने पर उक्त विशेषणविशिष्ट कर्म का अभाव हो जाने में क्षण का अमाशो जायमा और यदि उस समय भी स्वजन्यविभागप्रागभाव से विक्षिष्ट्र किसी अन्य कर्म के द्वारा पापका अस्तित्व सिस किया जायेगा तो क्षण तय की अनुगतायेता का लोप हो जायगा | अत: यह मानमा प्रावश्यक है शिक्षण स्वत: काल है। अण को स्वतन्त्र काल मान लेने पर यह कार्यकारणभाव मानना सम्भव हो माता है कि तरक्षणवृत्ति कार्य में तरक्षण का पूर्वमण कारण है तल भण भी कालिक सम्बन्ध से तरक्षणति हो माता हैं, क्योंकि प्रवानी क्षणा-हम मण में क्षण है इस प्रतीति के अनुरोध से एक पापं में भी कालिकसम्माध से भाधार-साधेय भाव माम्म है. अत: उकाकार्यकारणभाष के अनुसार सक्षम का पूर्वक्षण तरक्षण का भी कारण हो जाता है । सतत अण और उसका नाश बोनों ही सरक्षणजस्य, अत: लक्षणको सस्पति केबसरेही क्षण तरक्षण कानातम्भव हो जाने से क्षणको क्षणिकता की अमपति भी नही हो सकती। इसप्रकार आणिक क्षण को ही सतत कार्य का जनक मान लेने सब आपत्तियों का परिहार हो जाने से क्षण से अतिरिक्त किमी कारण ही कल्पना अमावश्यक है। तरक्षण में हो सन्तु आदि में पट आदि उत्पन्न होता है और कपास में घट आदि उत्पन्न होता है, सबमें ससकी वासि नहीं होती, अत: इस बातको उत्पत्ति के लिये पर आदि के प्रति तास आदिको एवं घट आदि के प्रति कपाल आदिको मीकारण मानना आवश्यक है" यह भी शलाका महाँको जा सकती, वोंकि जमे घटस्य मावि निस्य पना विना किसी नियामक कारण के हो स्वभाव से हो देशविशेष में मियत होते है उसी प्रकार घट आदि अमिरम कार्य मी स्वभावतः ही वेचविशेष में नियत हो सकते हैं। मिर्ष यह है कि कापाधिस्वकिसी काल में होगा और किसोकाल में होनाकी उपपत्ति के लिये ही कारण की कल्पना आवश्यक है, याचिकर किसी देश में होने और किसी में न होने की