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[ शा या० समुरुचय सस० २-लोक ५६
सदा मुगपत्तिजनकपिलक्षणाग्निसेयोगाभारादेव तदपक्तिरिति घाच्यम् , तत्रापि हेवन्तरापेक्षाययग्रवात , आवश्यकत्वेन कालस्पैय तद्धेतुत्वाचिस्पादित्याशयः ॥५५॥ विपक्ष माधकभाइमूलम्-कालाभाचे व गर्भादि सर्व स्थावस्यवस्थया ।
परेटहेतु सभावमात्रादेव सदुश्यात् ॥५॥ कालाभाचे च-कालस्याऽमाधारणहेतुत्वानगीकारे च, गर्भादिकं सर्व कार्यमध्ययस्थया नियमेन स्यात् । कुतः पत्याह-परेटहेतुसद्भावमात्रादेष-पराभिमतमातापित्रादिहेतुगंनिधानमात्रादेव, तदुवात अविलम्बन गर्भाशुत्पत्तिप्रसङ्गान् ।
ननु कालोऽपि यद्येक एत्र सर्वकार्गहेतुः, नदा युगपदेव सर्वकार्योत्पत्तिः, तसत्कार्ये संसदपाधिविशिष्टकालस्य हेतुखे बोपाधीनामेवाऽऽवरपकवान कार्यविशेषहेतुत्वम् , इति गत कालवादेन, इमि पेत् ? अन नन्या:-क्षणरूपः कालोऽतिरिझयत एव, स्वजन्यविभागमागमाचविशिष्टकमजस्तथास्ये जाते विमागे तदभाषापत्तः, तदाऽस्यविशिष्टकर्मणम्तथाखेऽननुगमात् । 'तस्य च तत्क्षणत्तिकायें तत्पूर्वक्षणत्वेन हेतुन्यम , तत्क्षणत्तिन्वं च
पर यह कहा जाय कि-'मिस काल में मंग का परिणाम सम्पन्न होता है उसके पूर्व मूग के पाक का जत्पादक अग्नि का विलक्षण संयोग ही नहीं रहता । अतः उसके प्रभाव सेहो निश्चित समय पूर्व मूग का पाक नहीं होता, अतः के पाकके प्रति कालविशेष को कारण मानमा निरक है।तो यह ठीक नहीं हो सकता क्योंकि उस सयोग के विषय में भी यह प्रश्न हो सकता है कि वह संयोग ही पहले पयों नहीं हो जाता TT प्रश्न का उत्तर काल द्वारा ही किया आ सकता है। अतः यह मामना हो उचित है कि काल कार्य के प्रति अवश्यवमत नियत पूर्ववता है, इसलिये एकमात्र ही काये का कारण है, कारण कहे जाने वाले अन्य पदार्थ अबषालुप्त-नियमपूर्ववत काल से भिन्न होने से अश्यासिय|४|
कार्य के नियतपूर्ववर्ती अन्य पदार्थ हो कारण है काल हो मध्यवासिन है' कालोचतावार केस विरोधी पक्षका ५६ श्री कारिका में अपन किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
काम को कार्य का यदि असाधारण कारप न माना जापगा तो गर्भ प्रावि सभी कार्यो की उत्पत्ति अव्यवस्थित हो जायगी, क्योंकि धन्यवाची की दृष्टि में मर्म के हेतु माता-पिता मारि है, पत: उनका निधान होने पर सत्काल ही पों के सम्म को आपत्ति होगी।
यदि यह कहा माय कि-"इस प्रकार की पाका काल के कारणवपक्ष में भी हो सकती है, असे मह बहा मा सकला है कि केवल काल ही यवो सब कार्यों का कारण है तो एक कार्य को
के समय सभी कायों की उत्पत्ति होनी चाहिये. क्योंकि एक काम को सत्पन्न करने के लिये
(१)-अतिरिक्तस्य क्षणरूपकासस्य ।