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________________ स्था. क टीका-हिन्दी विवेचन ] तथा मूलम् कालः पति भूतानि कालः संहरति प्रजाः । कालः मुनषु जागति कालो हि पुरतिक्रमः ॥५४॥ काला भूतानि-उत्पसिमन्ति, पति-उत्पत्रानो प्रकृतपर्यायोषचर्य करीतीत्यर्थः । तथा, कालः प्रजाः संहरति-प्रकृतपर्यायान्तरपीपभाजः करोति । मया, कालः सुप्तेषु अजनिसकार्यपु पभिमनकारणेषु सन्मु, जागति-विवश्निनकार्यमुपदधानीत्यर्थः । अतो हिनिश्रितम् , फालः सृष्टि-स्थिनि-प्रलयहेतुनया पुरनिश्रमः अनपलपनीयफारणताकः ॥५॥ मूलम्-किन कालाइते नैथ मुगपक्तिरपीक्ष्यते । स्थाल्यादिसंनिशनेऽपि नतः कालापसी मता ॥१५॥ 'किस' इत्युपचये, कालाहते कालं बिना, स्थास्पादिसनिधानेऽपि, आदिना विलक्षणवाहिसंयोगादिग्रहः, मुगपक्तिरपि-सद्गाना विलमणरूप-रमादिरूपविक्लिसिपरिणनिरपि, नैपक्ष्यते । ततोऽसौमृद्गपवितः, काला मता=कालमात्रजन्येष्टा । न च (सष्टि-स्थिति-प्रलय कालजनित है) ५४ वी कारिका से पूर्व कारिका में उक्त काल को कारणता का ही समर्थन किया गमा है। कारिका का अपं इस प्रकार है काल उत्पन्न पदार्थों का पाक करता है, पाक का अये हैं उत्पन्न पदार्थ के विद्यमान पयार्यों का पोषण । आशय यह है कि उत्पन्न हो जाने पर वस्तु का जो संबर्धम होता है वह काल से ही होता है, बही अनुकूल नूतन पर्यायों को उपस्थित कर उनके धोग से उत्पन्न वस्तु को उपचित करता है। काल उत्पन्न वस्तुओं का सहार करता है, संहार का अर्थ है वस्तु में विधमान पर्यापों के विरोधी पर्याय का उत्पावन । विरोधो पर्याप को उत्पसि से वस्तु के पूर्व पर्यायों को नियति होती है। पूर्व पर्यायों को नित्ति को ही वस्तु का संहार कहा जाता है । अन्य कारणों के अर्थात कारण माने जाने वाले अन्य पदार्थों के सुस्त मिश्यापार रहने पर काल हो कार्यों के सम्बन्ध में जाप्रत रहता है अर्थात कार्य के उत्पादनाय सध्यावार रहता है । इसलिये सष्टि, स्थिति और प्रलय के हेतुसूत काल का अतिकमण अर्थात काल में सृष्टि आदि को कार पता का अपलाप नहीं किया जा सकता ||५|| (काल के बिना मूगवाल का परिपाक अशक्य) काल को कारणता के समर्थन में एक बात और कही जा सकती है यह यह किस्पाली पाकपात्र [लपेली] और अग्नि का विलाण संयोग आदि का सानिधाम होमे पर. मी नंगको बाल का परिपाक उसके पूषवली रूप रस आवि का नाश हो कर नसमें नये रूप रम आदि का जम्म-उस समय तक नहीं होता तक उसका कारणभूतकाल उपस्थित नहीं हो जाता । इससे यह अभय मानना होगा कि मग पाक किसी अन्य हेतु म उत्पन्न होकर पल काल से ही उत्पन्न होता है। -सर्वत्र मूकदर्शषु 'पीच्यते इति पाठः ।
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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