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________________ ६८ ] [शा वा समुहषय स्त०२-इशोक ५३ मूलम-न कालव्यतिरेकेण गर्भकालशुभाविकम् । परिषत्रियायते लाके मयसी कारणं किल ॥५३॥ कालव्यतिरेकेणास्त्री-पुससंयोगादिजन्यत्वेन पराभिमतस्याऽपि गर्भस्य जन्म न भवति, न हिं तज्जन्मनि गर्भपरिणति तुः, अपरिणतस्यापि कदाचिज्जन्मदर्शनात् । तथा, कालोजप शीतोष्ण- वधुपाधि, तदशतिरेकेा न भवति । अत्र कालस्थाने 'पाल' इति क्यचित् पाठः, तत्र शलन्यं जन्मोत्तरावस्था, साऽपि फालयतिरेण न, अन्यथाऽतिप्रमङ्गादित्यर्थः । तथा गुमाविक स्वर्गादिकम् , आदिना नरमादिग्रहः, यफिश्चित् लोके घटादि, Aft कालव्यतिरेण न भवति. कर्मदण्डादिमवेपि कालान्तर एवं स्वर्गघटाधुत्पत्तः । तत-जस्मान् कारणात् • असो-कालः 'किल' इति सत्ये, कारणम् , अन्यस्य वन्यथासिद्भूत्वादसत्पपमिति भावः ॥५३॥ (कालबादी का युषितसंवर्भ) सबसे पहले ५३ वीं कारिका द्वारा कालवायी के मतका उपपादन प्रस्तुत किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है गर्भ का जन्म उचितकाल के अभाव में नहीं होता. जो लोग गर्भ को स्त्री-पुरुष के संयोग आविलेलभ्य मानते हैं नमके मन में भी जमित काल के उपस्थित न होने तक गर्भ का जन्म नहीं माना जाता । 'गर्भ के सन्म में गर्भ का परिणत अवस्था ही कारण है' यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि पवा कवा अपरिणत गर्भ का भी जन्म वेना जाता है। गोत. उष्ण, वर्षा आदि उपाधिमूत का भी चिप्तकाल के अभाव में महीं होते। स्पष्ट ही है किशोत समय में ही प्रीष्मकाल पा वर्षाकाल नहीं आ जाता, अत: इन उपाधिभूत कालों के प्रति भी काल हो कारण है। किमो किसो पुस्तक 'कालो स्थान में माल पाठ प्रात होता है.उस पास के अनसार कारिकास अंदा का यह अर्य होगा कि बालावस्या अर्थात् जन्म के बावको अबस्था भी उचित काल के अभाव में नहीं होती, असे भी कालविशेष से अन्य म मानने पर जन्म के पूर्व अथवा यौवन अवस्था में भी बालाबस्याको उत्पत्तिकी आपत्ति हो सकती है। राम का अर्थ है स्वर्ग और आदि पद का तात्पर्य नरक में, आशप यह है कि स्वर्ग और रकमी काल के बिना नहीं होता। कहने का अभिप्राय यह है कि संसार में भो भोकोई कार्य होता है उसमें से कोई भी कार्य सित काल के भाव में नहीं होता। सामाधि कमें सम्पन्न हो जाने पर भी स्वगं उसो समय नहीं होता किन्तु योग्यकाल चपस्थित होने पर ही होता है। इसी प्रकार घट आदि कार्य सी व आदि कारण के रहते हुये मी योग्यकाल के उपस्थित हुये बिना नहीं उत्पन्न होते । इसलिये यह है सत्य है कि कालसी सब का कारण है, 'काल से मिष पकार्य भी कार्य का कारण होता है। यह असत्य है, क्योंकि काल से अन्य पदार्थ प्रत्यासिद्ध हो जाते है
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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