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________________ ६२ ] [शास्त्रयातासमुच्चय स्त० २-श्लोक १८ सस्मान 'प्रमादयोगेन व्यपरोपर्म हिंयाति पनि हत्या | अत्र च प्रमादयोगः-यतनाऽभाषः, यतना घ जीररसानुकलो व्यापारः, तस्वं च जीवमरणयापारविघटकत्वम् , युगमात्रक्षेत्रे सम्पग्नेप्रच्यापाररूपेयांममित्यादिना जीयमरणजनकचरणन्यापारादेरनिष्टसाधनत्वेन निबननादिति बोध्यम् । न प 'मरणानुकूलच्यापारेण' इत्येचा प्रस्तु, क्रिमधिकेन १ इति वाच्यम् , अप्रमत्तहिंसायामतिच्याप्तः । न चवमध्यमाभीमाऽविघटनेनाऽप्रमत्तहिंमाश हिमात्यापतिः, शक्पविघटनन्यस्य न्यापारविशेषणत्वात् । न चवमप्यनशानादावतिव्याप्तिः परजीयग्रहणे चात्मरिमायामच्याप्तिरिति वाच्यम् , शुभसंकल्पापूर्वकन्यम्य मही कही जा सकती। फूपनिर्माण की पया भी मरण जनक न होने से निर्माण भो मरणोदरपक नहीं हो सकता, किन्तु मरणोधकरव का ऐसा लक्षण करने पर क्सु को माभूत हिमा मरणोइंश्यक हो जायगी, पोंकि अमिष्टोम आदि कानु में पशुवध गावश्यक होने से मनुचिको को पशुवय की छा मारनी होगी अत: स्पिक हिसा कोण्या मरणजनक या होगी और उस छा का विषम होम से स्वस्त हिंसा में मरणोद्देश्यकत्व अपरिहार्य हो जायमा । (मरणफलकत्वबोधविषिबोधितकर्तव्यताकाम्यत्वरूप प्रदृष्टाहारकरव) अष्टाचारकास्त्र का प्रर्थ यदि यह किया जाय कि जिस व्यापार की कसम्यता मरमफलकाव के अवोधक विधि से पोषित हो उससे अन्य व्यापार अदालारक व्यापार होता'-तो हिमामात्र में उसकी जपपसिनो जायगी क्योंकि हिसाको कर्तव्यता किसी विधि सोषित नहीं होती मतः उसमें उक्त विधिविशेष से बोधितकसम्यताकान्यस्व सुघट है, किन्तु यह अर्थ करने पर भी श्येन को हिमा से पथक करने की कामना पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि इन को कस्यापा का बोपन विधि पात्रमरणफलकाव का बोधक होता है, अत: मरणफलकाव के भयोधक विधि से मोधित करुपता काश्यत्व उसमें मो या जाने से उसमें उक्त हिसालमन का समन्वय रहै। एक त्वहिता को कसंध्यता का बोधक 'अग्नीषोमीयं पशुमालमेस' यह विधि भी मरणफलस्व कामोषक है अत: उप्तमें मरणफलकत्व के प्रबोधक विधि से बोशितकर्तव्यताकाण्यत्व आ जाने से एवं उत्तरीत्या मिर्वाचित मरणोरेश्यकरका जाने से वह भी सामान्य हिंसा की कोटि में आ जायगी । हिसालमगघटक ग्यापार में बितिष का निवेश कर भी लक्षण को निवाष नहीं किया जा सकता क्योकि प्रभाव कृत हिसा में मरणोरयकराब होने से अम्पाप्ति हो जायगी और उक्तलक्षणात्मक रूप स हिसा को पापजनक मानन में गौरव भी होगा। जनमताभिमत हिसालक्षण] नेपालिकों की ओर से प्रस्तुत किये गये हिसालक्षण को सरोष बताकर व्यापाकार में बात मतसम्मत हिसालक्षम को परमपिप्रणीत बताते हुये उसकी समीधीमता की घोषणा की है। वह लक्ष इस प्रकार है 'प्रमावयोगेन प्राणण्यपरोपगं हिता-प्रमावयोग से होनेवाला प्राणहरण हिमा है। प्रमाबयोगमा अथ है-यसना का अमान। यतना का अर्थ है जीवरक्षानुकल पापार । बीबरमानुकुल व्यापार उस व्यापार को कहा जाता है जिसमे जोधमरणानुकुल व्यापार का विघटम हो । असता अभिप्राय यह हुआ कि जब मनुष्य जोषमरणामुकूल व्यापारका परिहार करन का प्रपल हो
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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